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Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements
एक जुलाई 1907 से 31-12-1909 तक उनके संपादन काल में 'जैन गजट' की ग्राहक संख्या पाँच गुनी बढ़ जाना, उनकी श्रम-साध्यता, विद्वत्ता, लोकप्रियता एवं स्पष्टवादिता का प्रत्यक्ष प्रमाण है। बाद में 'जैन हितैषी' के भी वे लगभग 12 वर्षों तक संपादक रहे। अप्रैल 1929 में उन्होंने समन्तभद्राश्रम की स्थापना कर 'अनेकान्त' मासिक के प्रकाशन एवं संपादन का भार ग्रहण कर साक्षात अनेकान्तवाद का अलख जगाया।
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पं. जुगलकिशोर मुख्तारः अपने युग
के शिशु
राजनीति के समीक्षकों ने मध्यकालीन पोपशाही जिन्होंने स्वर्ग के प्रमाण-पत्रों का विक्रय तक प्रारंभ कर दिया था के बिरुद्ध शंखनाद करने वाले 15वीं शताब्दी के इटली के राजनीतिक विचारक मेकियावेली को 'अपने युग का शिशु' कहा जाता है, क्योंकि उसने अपनी रचनाओं में मध्यकालीन धर्मान्धता, ईसाई धर्म गुरू पोप की विलाशिता और राज्य कार्यों में धर्मगुरूओं के हस्तक्षेप का तार्किक किन्तु प्रखर विरोध किया और प्राचीन कालीन धार्मिक एवं सामाजिक सहिष्णुता, ज्ञान-विज्ञान की प्रगति का वाहूक बनकर पुनः जागरण का संदेशवाहक बना। तत्कालीन समाज में उसका विरोध भी हुआ, क्योंकि उसकी विचार- श्रृंखला समय से काफी पूर्व की थी।
16वीं - 17वीं शताब्दी में जब उसकी रचनाओं का मूल्यांकन हुआ, तब उसके महत्व को समझा गया और आज तो यह स्थिति है कि पूरा राजनीतिक विश्व, राजनीति शास्त्री और सक्रिय राजनीतिज्ञ उसको रचनाओं को 'राजनीति का बाइविल' मान कर अध्ययन करते हैं। भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में मेकियावेली पर प्रश्न पूँछे जाते हैं। मेरे मत में जैन वाङ्मय के अनुशीलन, समाज-सुधार, अंधविश्वासों और रूढ़ियों पर प्रहार करने के कारण पं. मुख्तार भी अपने युग के शिशु की श्रेणी में आते हैं। जैसा कि पूर्व में उल्लेख किया जा चुका है कतिपय भट्टारकों ने ग्रन्थकार कहलाने की लालसा में वैदिक वाङ्मय के अंशों को कहीं मूलरूप में, कहीं तोड़-मरोड़ कर ऐसे जाली जैन ग्रन्थ रच दिये थे, जिनसे हमारी मूल संस्कृति प्रदूषित हो रही थी। मुख्तार सा. ने 'ग्रन्थ परीक्षा' लिखकर उनका भंडाफोड़ किया, तब उनके अनुगामी धर्मान्ध मुख्तार सा. के विरोधी बन गए। इसी प्रकार अस्पृश्यता