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________________ ५८ समीचीन-धर्मशास्त्र उत्तरगुणोंमें, बिना किसी विशेषताका उल्लेख किये, उसको फिर से दुहरानेकी क्या जरूरत थी ? इसलिये यह पद्य पुनरुक्त-दोषसे युक्त होनेके साथ-साथ अनावश्यक भी जान पड़ता है। यदि मांसादिके त्यागका हेतु बतलानेके लिये इस पद्यको देनेकी जरूरत ही थी तो इसे उक्त 'मद्यमांसमधुत्यागैः' नामक पद्यके साथ हीउसले ठीक पहले या पीछे देना चाहिये था । वही स्थान इसके लिये उपयुक्त था और तब इसमें पुनरुक्त आदि दोषोंकी कल्पना भी नहीं हो सकती थी।' ____ऊपर के इस कथनमे यह तो स्पष्ट है कि यह पद्य मद्यादिके त्याग-विषयक हेतुओका अथवा उनके त्यागकी दृष्टिका उल्लेख करनेकी वजहसे कथनकी कुछ विशेषताको लिये हुए ज़रूर है और इसलिये इसे पुनरुक्त या अनावश्यक नहीं कह सकते । अब देखना सिर्फ इतना ही है कि इस पद्यको अष्टमूलगुणवाले पद्यके साथ न देकर यहाँ क्यों दिया गया है । मेरी रायमें इसे यहाँ पर देने का मुख्य हेतु यह मालूम होता है कि ग्रंथमें, इससे पहल, जो 'भोगोपभोगपरिमाणव्रत' का तथा 'भोग' का म्वरूप दिया गया है उससे यह प्रश्न सहज ही उत्पन्न होता है कि क्या मद्यादिक भोग पदार्थोंका भी इस व्रतवालेको परिमाण करना चाहिये ? उत्तरमें आचार्यमहादयने, इस पद्यक द्वारा, यही सूचित किया है कि 'नहीं, इन चीजोंका उसके परिमाण नहीं होता, ये तो उसके लिये बिल्कुल वर्जनीय हैं ।' साथ ही, यह भी बतला दिया है कि क्यों वर्जनीय अथवा त्याज्य हैं। यदि यह पद्य यहाँ न दिया जाकर अष्टमूलगुणवाले पद्यके साथ ही दिया जाता तो यहाँ पर तो इससे मिलते-जुलते आशयके किसी दूसरे पद्यको देना पड़ता और इस तरह पर ग्रन्थमें एक बातकी पुनरुक्ति अथवा एक पद्यकी व्यर्थकी वृद्धि होती । यहाँ इस पद्यके देनेसे दोनों काम निकल जाते हैं—पूर्वोद्दिष्ट मद्यादिके त्यागका हेतु भी
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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