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________________ ५० समीचीन धर्मशास्त्र वे सच पद्य मूलरूपसे दिये हुए हैं, और इस लिये मुझे अधिक सावधानी से काम लेना चाहिये । सचमुच ही नागसाहबने ऐसा करते हुए बड़ी भारी भूलसे काम लिया है। परंतु यह अच्छा हुआ कि में आपको भी अपनी भूल मालूम पड़ गई और आपने अपनी इस नासमझीपर खेद प्रकट करते हुए, यह प्रण किया है कि, मैं भविष्य में ऐसी कमती श्लोकवाली कोई प्रति इस ग्रंथकी प्रकाशित नहीं करूँगा " । यह सब कुछ होते हुए भी, ग्रंथके कितने ही पद्योंपर अ तक आपका संदेह बना रहा है । एक पत्रमें तो आपने मुझे यहाँ तक सूचित किया है कि - "क्षेपककी शंका बहुत लोगोंको है परंतु उनका पक्का आधार नहीं मिलता।" इस वाक्यसे यह बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है कि नाग साहबने जिन पद्योंको 'क्षेपक' करार दिया है उन्हें क्षेपक करार देनेके लिये आपके अथवा आपके मित्रोंके पास कोई पक्का आधार (प्रमाण) नहीं था और इसलिये आपका यह सब कोरा संदेह ही संदेह रहा है । · रत्नकरंड श्रावकाचारकी एक एक आवृत्ति दक्षिण महाराष्ट्रजैनसभा के जनरल सेक्रेटरी ( X प्रोफेसर अण्णा साहब बाबाजी लठ्ठे ) ने भी मराठी अनुवाद सहित प्रकाशित कराई है । प्रकाशक हैं 'भाऊ बाबाजी लट्ठ कुरु दवाड ।' इस आवृत्ति में यद्यपि मूल श्लोक वे ही १५० दिये हैं जो सटीक प्रतिमें पाये जाते हैं परन्तु प्रस्तावना में इतना जरूर सूचित किया है कि इन श्लोकोंमें कुछ 'असम्बद्ध' श्लोक भी हैं। साथ ही, यह भी बतलाया है कि, कनडी लिपिकी एक प्रतिमें, जो उन्हें रा० देवाप्पा उपाध्याय * देखो 'जैनबोधक' वर्ष ३२ का छठा अंक | X यह नाम मुझे पं० नाना रामचन्द्रजी नागके पत्रसे मालूम हुआ है । साथ ही, यह भी ज्ञात हुआ है कि इस प्रवृत्तिका अनुवादादि कार्य भी प्रोफेसर साहबका ही किया हुआ है ।
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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