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________________ १५८ समीचीन धर्मशास्त्र प्रहंत्पूजा-फल [ श्र० ५ हन्तके *अर्हच्चरणसपर्यामहानुभावं महात्मनामवदत् । भेकः प्रमोदमत्तः कुसुमेनैकेन राजगृहे ॥ ३० ॥ १२० ॥ 'राजगृह नगर में हर्षोन्मत्त हुए मेंडकने एक फलसे चरणोंकी पूजाके माहात्म्यको महात्माओं पर प्रकट किया ।' व्याख्या - यहाँ उस मेंडककी पूजा - फल प्राप्तिका उल्लेख है जिसे अपने पूर्वजन्मका स्मरण ( जातिस्मरण ) हो आया था और जो वीर भगवान की पूजाके लिये लोगोंको जाता हुआ देखसुनकर आनन्द-विभोर हो उठा था और स्वयं भी पूजाके भावसे एक पुष्पको मुखमें दबाकर उछलता कुढ़कता हुआ जा रहा था कि इतने में राजा श्रेणिकके हाथीके पग तले आकर मर गया और पूजाके शुभ भावोंसे मरकर देवलोकमें उत्पन्न हुआ था तथा अपनी उस पूजा - भावनाको चरितार्थ करनेके लिये तुरन्त ही मुकुट में मेंडक - चिन्ह धारण कर श्रीवीर भगवान के समवसरण में पहुँचा था और जिसकी इस पूजा - फल प्राप्तिकी बातको जानकर बड़े बड़े महात्मा प्रभावित हुए थे । वैयावृत्यके अतिचार हरित - पिधान - निधाने नादराऽस्मरणमत्सरत्वानि । वैयावृत्त्यस्यैते व्यतिक्रमाः पंच कथ्यन्ते ॥ ३१ ॥ १२१ ॥ इति श्रीस्वामिसमन्तभद्राचार्य विरचिते समीचीनधर्मशास्त्रे रत्नकरण्डाऽपरनाम्नि उपासकाध्ययने शिक्षाव्रतवर्णनं नाम पंचममध्ययनम् ॥ ५ ॥ हरितपिधान - हरे ( सचित्त, अप्रासुक ) पत्र - पुष्पादिसे ढकी आहारादि देय वस्तु देना, हरितपिधान—हरे ( प्रप्रासुक - सचित्त ) ** इस कारिकाके सम्बन्ध में भी विशेष विचार प्रस्तावनामें व्यक्त किया गया है ।
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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