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________________ समीचीन-धर्मशास्त्र [अ०३ के निम्न पद्यसे प्रकट है, जो लाटीसंहितामें भी पाया जाता है और जिसमें यह भी बतलाया गया है कि जो गृहस्थ इन आठोंका त्यागी नहीं वह नामका भी श्रावक नहीं: मद्यमांसमधुत्यागी त्यक्तोदुम्बरपंचकः । नामतः श्रावकः ख्यातो नान्यथापि तथा गृही॥ असल श्रावक तो वे ही हैं जो पंच अणुव्रतोंका पालन करते हैं। और इस सब कथनकी पुष्टि शिवकोटि आचार्यकी 'रत्नमाला' के निम्न वाक्यसे भी होती है, जिसमें पंच-अणुव्रतोंके पालन-सहित मद्य, मांस और मधुके त्यागको 'अष्ट मूलगुण' लिखा है और साथ ही यह बतलाया है कि पंच-उदुम्बरवाले जो अष्टमूलगुण हैं वे अर्भकों-बालकों, मूखों, छोटों अथवा कमजोरोंके लिए हैं। और इससे उनका साफ तथा खास सम्बन्ध अव्रतियोंसे जान पड़ता है मद्य-मांस-मधु-त्याग-संयुक्ता ऽणुव्रतानि नुः । अष्टौ मूलगुणाः पंचोदुम्बराश्चार्भकेष्वपि ॥१६॥ इन समन्तभद्र-प्रतिपादित मूलगुणोंमें श्रीजिनसेन और अमितगति जैसे प्राचार्योंने भी, अपने-अपने प्रतिपाद्योंके अनुरोधवश, थोड़ा-बहुत भेद उत्पन्न किया है, जिसका विशेष वर्णन और विवेचन 'जैनाचार्योंका शासन भेद' नामक ग्रन्थसे जाना जा सकता है। इस प्रकार श्रीस्वामिसमन्तभद्राचार्य-विरचित समीचीन-धर्मशास्त्र अपरनाम रत्नकरण्ड-उपासकाध्ययनमें अणुव्रतोंका वर्गान करनेवाला तीसरा अध्ययन समाप्त हुआ ।।३।। *:--
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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