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________________ समीचीन-धर्मशास्त्र [अ०३ अष्ट मूलगुण मद्य-मांस-मधु-त्यागैः सहाऽणुव्रत-पंचकम् । अष्टौ मूलगुणानाहुहिणां श्रमणोत्तमाः ॥२०॥६६॥ इति श्रीस्वामिसमन्तभद्राचार्य-विरचिते समीचीनधर्मशास्त्रे रत्नकरण्डाऽपरनाम्नि उपासकाध्ययन अणुव्रतवर्णनं नाम तृतीयमध्ययनम् ॥३॥ ' श्रमणोत्तम-श्रीजिनेन्द्रदेव-मद्यत्याग, मांस-त्याग और मधुत्यागके साथ पांच अणुव्रतोंको ( सद् ) गृहस्थोंके आठ मूलगुण बताते हैं। ---ौर इससे अन्य दिग्वतादिक जो गुरण हैं वे सब उत्तरगुरण है, यह साफ़ फलित होता है।' ___ व्याख्या-यहाँ 'गृहिणां' पड़ यद्यपि सामान्यरूपसे बिना किसी विशेषणके प्रयुक्त हुआ है। फिर भी प्रकरणकी दृष्टिसे वह उन सद्गृहस्थोंका वाचक है जो व्रती-श्रावक होते हैं-अव्रती गृहस्थोंसे उसका प्रयोजन नहीं है । जैनधर्ममें जिस प्रकार महाव्रती मुनियोंके लिए मूलगुणों और उत्तरगुणोंका विधान किया गया है उसी प्रकार असुव्रती श्रावकोंके लिये भी मूलोत्तरगुणोंका विधान है । मूलगुणोंसे अभिप्राय उन व्रत-नियमादिकसे है जिनका अनुष्ठान सबसे पहले किया जाता है और जिनके अनुप्शनपर ही उत्तर गुणोंका अथवा दूसरे व्रत-नियमादिका अनुष्ठान अवलम्बित होता है। दूसरे शब्दोंमें यों कहना चाहिये कि जिस प्रकार मूलके होते ही वृक्षके शाखा-पत्र-पुष्प-फलादिका उद्भव हो सकता है उसी प्रकार मूल गुणोंका आचरण होते ही उत्तर गुणोंका आचरण यथेष्ट बन सकता है। श्रावकोंके वे मूलगुण आठ हैं, जिनमें पाँच तो वे अणुव्रत हैं जिनका स्वरूपादि इससे पहिले निर्दिष्ट हो चुका है और तीन गुण मद्य, मांस तथा मधुके त्यागरूपमें हैं। मद्य. जिसके त्यागका यहाँ विधान है, वह नशीली वस्तु है जो मनुष्यकी बुद्धिको भ्रष्ट करके उसे उन्मत्त अथवा भारी
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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