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समीचीन-धर्मशास्त्र [अ०३ 'बाह्य षु दशसु वस्तुषु' इन पदोंसे जाना जाता है । वे दस प्रकारके परिग्रह क्षेत्र, वास्तु, धन, धान्य, द्विपद, चतुष्पद, शयनासन, यान, कुप्य और भाण्डा हैं । क्षेत्रमें सब प्रकारकी भूमि, पर्वत
और नदी नाले शामिल हैं । वास्तुमें सब प्रकारके मन्दिर, मकान, दुकान और भवनादिक दाखिल हैं। धनमें सोना-चाँदी, मोती, रत्न, जवाहरात और उनसे बने आभूषण तथा रुपयापैसादि सब परिग्रहीत हैं। धान्यमें शालि, गेहूँ, चना, मटर, मंग, उड़द आदि खेतीकी सब पैदावार अन्तर्भूत है । द्विपदमें सभी दासी-दास, नौकर-चाकर, स्त्री-पुत्रादि दो पैरवाले जीवोंका तथा चतुष्पदमें हाथी, घोड़ा, बैल, भैंसा, ऊँट, गदहा, गाय, बकरी आदि चार पैरों वाले जन्तुओंका ग्रहण है। शयनासनमें सोने और बैठनेके सब प्रकारके उपकरणोंका समावेश है; जैसे खाट, पलंग, चटाई, पीढ़ा, तख्त, सिंहासन, कुर्सी आदिक । यानमें डोली, पालकी, गाड़ी, रथ, नौका, जहाज. माटरकार और हवाईजहाज आदिका अन्तर्भाव है। कुप्यमें सब प्रकारके सूती, उनी, रेशमी आदि वस्त्र अन्तर्निहित हैं तथा भाण्डमें लोहा, तांबा, पीतल, कांसी आदि धातु-उपधातुओंके, मिट्टीपत्थर-कांचके और काष्ठादिकके बने हुए सभी प्रकारके बर्तन, उपकररप, औजार, हथियार तथा खिलौने संग्रहीत हैं । इन सब परिग्रहोंका अपनी शक्ति परिस्थिति और आवश्यकताके अनुसार परिमाण करके उस प्रमाणसे बाहर जो दूसरे बहुतसे बाह्य परिग्रह हैं उन्हें ग्रहण न करना ही नहीं बल्कि उनमें इच्छा तकका जो त्याग है वही परिमित-परिग्रह कहलाता है और इसीसे उसका दूसरा नाम 'इच्छापरिमाण' भी रखा गया है। + क्षेत्र वास्तु धनं धान्यं, द्विपदं च चतुष्पदम् ।
शैय्यासनं च यानं च कुष्य-भाण्डमितिद्वयम् ॥"