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कारिका ५६ ]
सत्यापुव्रत के अतिचार
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पूर्ण अथवा प्रांशिक रूपमें अपहरण होता हो ; ये सब सत्याऽणुव्रत के अतिचार हैं ।
व्याख्या - जिन पाँच अतिचारोंका यहाँ उल्लेख है उनमें 'परिवाद' और 'पैशून्य' नामके दो अतिचार ऐसे हैं जिनके स्थान परतत्त्वार्थ सूत्र में क्रमशः मिथ्योपदेश' और 'साकारमंत्रभेद' ये दो नाम दिये हैं । ये नाम सद्यपि उक्त अतिचारोंके पर्याय नाम नहीं हैं बल्कि श्राचार्यकिं पारस्परिक शासनभेदके सूचक दूसरे afer हैं, फिर भी टीकाकार प्रभाचन्द्र ने परिवादक 'नियोपदेश' के रूप में और पेशन्यकी 'साकारमन्त्रभेद के रूप में व्याख्या की है और व्याख्याके साथ ये नाम भी स्पष्ट रूप से दे दिये हैं। यह चिन्तनीय है। क्योंकि परिवादका प्रसिद्ध अर्थ निन्दा-गर्दा अपवाद (Blame, abuse) जैना है और पैशुन्य शब्द चुगली (Backbitting) जैसे अर्थमं प्रयुक्त होता है । सोमदेवसूरिने इस व्रत के अतिचारोंका सूचक जो श्लोक दिया है वह इस प्रकार है
"मन्त्रभेदः परीवाद: पैशून्यं कूटलेखनम् ।
धा साक्षिपदोतिश्च सत्यस्यैते विघातकाः ॥"
+ परिवादी मिथ्योपदेशोऽभ्युदयनिः श्रेयमार्थेषु क्रियाविशेषेोवन्यस्यान्यथाप्रवर्तनमित्यर्थः । पशून्यं गतिकार-भ्रू चिक्षेपादिभिः पराभिप्रायं ज्ञात्वा प्रसूयादिना तत्प्रकटनं साकारमंत्रभेद इत्यर्थः ।
* परिवादस्तु निन्दायां वीरणावादनवस्तुनि ( हेमचन्द्रः ) श्रवणीक्षेपनिर्वाद- परीवादापवादवत् उपक्रोशो जुगुप्सा च कुत्मा निन्दा च ग || ( अमर: )
परि सर्वतो दोपोल्लेखेन वाद: कथनं अपवाद: । ( शब्दकल्पद्रुमः ) परिवाद : 1 Blame, censure detraction, abuse; 2 Scandal (V. S. Apte)