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________________ समीचीन-धर्मशास्त्र [अ०३ प्राप्त कर लेता है-सम्यग्दर्शनकी प्राप्ति उसके सम्यग्ज्ञानी होने में कारणीभूत है । और सम्यग्दर्शनकी प्राप्ति तब होती है जब मोहतिमिरका अपहरण हो जाता है। जब तक मोह-तिमिर बना रहता है तब तक सम्यग्दर्शन नहीं हो पाता । अथवा जितने अंशोंमें वह बना रहता है उतने अंशोंमें यह नहीं हो पाता। अतः पहले सम्यग्दर्शनमें बाधक बने हुए मोह-तिमिरको प्रयत्नपूर्वक दूर करके दृष्टि-सम्पत्तिको-सम्यग्दृष्टिको-प्राप्त करना चाहिये और सम्यग्दृष्टिकी प्राप्ति-द्वारा सम्यग्ज्ञानी बनकर रागद्वेषकी निवृत्तिको अपना ध्येय बनाना चाहिये; तभी सम्यक्चारित्रका आराधन बन सकेगा। जितने जितने अंशोंमें यह मोह-तिमिर दूर होता रहेगा उतने उतने अंशोंमें दर्शन-ज्ञानकी प्रादुर्भूति होकर आत्मामें सम्यक्चारित्रके अनुष्ठानकी पात्रता आती रहेगी। और इसलिये मोह-तिमिरको दूर करनेका प्रयत्न सर्वोपरि मुख्य है-वही भव्यात्मामें सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप धर्मकी उत्पत्ति (प्रादुभूति ) के लिये भूमि तय्यार करता है। इसीसे ग्रन्थकी आदिमें मोह-तिमिरके अपहरणस्वरूप सम्यग्दर्शनका अध्ययन सबसे पहले कुछ विस्तारके साथ रक्खा गया है और उसमें सम्यग्दर्शनकी प्राप्तिपर सबसे अधिक जोर देते हुए उसे ज्ञान और चारित्रके लिये बीजभूत बतलाया है। चारित्रके ध्येयका स्पष्टीकरण राग-द्वेष-निवृत्तिहिंसादि निवर्तना-कृता भवति । अनपेक्षिताऽर्थवृत्तिः कः पुरुषः सेवते नृपतीन् ॥२॥४॥ ‘राग-द्वेपकी निवृत्ति हिंसादिककी निवर्तनासे-चारित्ररूपसे कथ्यमान अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रहादि व्रतोंकी + देखो, 'विद्या-वृत्तस्य संभूति' इत्यादि कारिका ३२ ! * रागद्वे पनिवृत्तेरितिपाठान्तरम् ।
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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