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________________ समीचीन-धर्मशास्त्र [प्र.१ दबावसे सम्बन्ध नहीं रखता-उसका आधार सुयुक्तिवाद और प्रेममय-व्यवहार-द्वारा ग़लतफहमीको दूर करना है। अंगोंमें प्रसिद्ध व्यक्तियोंके नाम तावदंजनचौरोऽङ्गे ततोऽनन्तमती स्मृता । उद्दायनस्तृतीयेऽपि तुरीये रेवती मता ॥ १६ ।। ततो जिनेन्द्रभक्तोऽन्यो वारिषेणस्ततः परः । विष्णुश्च वज्रनामा च शेषयोलेक्षतां गताः ॥२०॥ 'सम्यग्दर्शनके उक्त आठ अङ्गों से प्रथम अंगमें अंजन चोर, द्वितीयमें अनन्तमती, तृतीयमें उद्दायन, चतुर्थ में रेवती, पंचममें जिनेन्द्रभक्त, छठेमें वारिषेण, सप्तममें विष्णु और अष्टम अंगमें वचनामके व्यक्ति प्रसिद्धि को प्राप्त हुए हैं। व्याख्या-इन व्यक्तियोंकी कथाएँ सुप्रसिद्ध हैं और अनेक प्रन्थों में पाई जाती हूँ । अतः उन्हें यहाँ उदाहृत नहीं किया गया है । ___अंगहीन दर्शनकी असमर्थता यदि सम्यग्दर्शन इन अंगोंसे हीन है तो वह कितना निःसार एवं अभीष्ट फलको प्राप्त करानेमें असमर्थ है उसे व्यक्त करते हुए स्वामीजी लिखते हैं -....... नाङ्गहीनमलं छेत्त दर्शनं जन्म-सन्ततिम् । न हि मन्त्रोऽक्षर-न्यूनो निहन्ति विषवेदनाम् ॥२१॥ __ 'अंगहीन सम्यग्दर्शन जन्म-संततिको-जन्म-मरणको परम्परारूप भव(संसार)-प्रबन्धको-छेदनेके लिये समर्थ नहीं है; जैसे . * इन दो पद्योंकी स्थिति आदिके सम्बन्धमें विशेष विचार एवं ऊहा पोह ग्रन्थको प्रस्तावनामें किया गया है, उसे वहाँसे जानना चाहिये। .. 'परं' इति पाठान्तरम् ।।
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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