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________________ १२६ समीचीन-धर्मशास्त्र देशावकाशिकके अतिचार १३४ प्रोषधोप०का दूसरा लक्षण १४६ किन अवस्थाओं में यह व्रती प्रोषधोपवासके अतिचार १४७ दोषी नहीं होता 'अदृष्टमृष्टानि' विशेषणपदकी सामायिकत्रत-स्वरूप १३५ तत्वार्थसत्र में प्रयन समय-स्वरूप ... १२६ विशेषणके साथ तुलना १४७ सामायिकके योग्य स्थानादि १३७ - १४८ सामायिककी दृढताक साधन१३८ लक्षण में प्रयक्त खास खास पदों प्रतिदिन सामायिककी उप ___ की दृष्टिका स्पष्टीकरण १४६ योगिता ... १३८ व्रतके 'वैय्यावृत्य' नाममें 'अतिथिसामायिकस्थ गृहस्थ मुनि संविभाग' नामकी अपेक्षा के समान ... १३६ अनेक विशेषताओंका समासामायिक और जापमें अन्तर १४० वेश, कुछका दिग्दर्शन १५० सामायिक-समयका कर्तव्य १४० दान. दाता और पात्र १५० सामायिकबतके अतिचार १४२ नवपुण्यों, सप्तगुणों और सूनामन-वचन-कायके दुःप्रणिधान- । ओंके नामोंका संसूचनादिक १५१ __ का स्पप्टीकरण १४२ अतिथि-पूजादि-फल १५२ प्रोषधोपवास-लक्षण १४२ वैय्यावृत्यक चार भेद १५४ 'पर्वणी' के चतुर्दशी अर्थका वैय्यावत्यके दृष्टान्त १५४ स्पष्टीकरण और चतुर्विध वैय्यावत्यमें पूजाविधान १५५ आहारके त्यागकी दृष्टि १४३ पूजाके दो श्रेष्ठ रूप—पूज्यके उपवासके दिन त्याज्य कमे १४३ अनुकूल-वर्तन और उस ओर जो उपवास लौकिक दृष्टिसे किये ले जानेवाले स्तवनादिक १५६ जाते हैं वे इस उपवासकी अति प्राचीनों-द्वारा की जाने कोटिमें नहीं आते १४४ वाली द्रव्यपूजा उपवास-दिवसका विशेष अर्हत्पूजा-फल ... १५८ कतव्य .... १४४ वैय्यावृत्यके अतिचार १५८
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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