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________________ विषय-सूची १२३ कुलजात्यादिहीन धर्मात्मा- । सम्यग्दर्शनकी उत्कृष्टता ६७ ओंका तिरस्कार अपने ही सम्यग्दर्शन-विना सम्यग्ज्ञानादिधर्मका तिरस्कार है,सहेतु ६२ ___ की उत्पत्ति स्थिति और फलमददोष-परिहार ___ सम्पत्ति नहीं बनती ६७ धर्मभावके कारण जहाँ पाप मोही मुनिसे निर्मोही गृहस्थ का निरोध है और धर्माभाव श्रेष्ठ है ... ८ के कारण जहां पापासव सम्यग्दर्शनका माहात्म्य ६६ बना हुआ है वहाँ दूसरी शुद्ध सम्यग्दर्शनसे युक्त जीव किन कूल-जात्यादि-सम्पत्ति की अवस्थाओंको प्राप्त नहीं अप्रयोजकता होते और किन-किनको यथाएक चाण्डालका पुत्र भी सम्य- साध्य प्राप्त होते हैं, यथोग्दर्शनधर्मसे सम्पन्न है तो वह चित विवेचनके साथ देवके रूपमें आराध्य है ६४ धर्मके प्रसादसे एक कुत्ता भी । द्वितीय अध्ययन देव और पापके योगसे एक सम्यग्ज्ञान-लक्षण देव भी कुत्ता बन जाता है ६५ | प्रथमानुयोग-स्वरूप सम्यग्दृष्टिका विशेष कर्तव्य करणानुयोग-स्वरूप (कर्तव्यकी दृष्टि-सहित) ६५ चरणानुयोग-स्वरूप कुदेवागम-लिंगियोंमें उनके उपा- द्रव्यानुयोग-स्वरूप सक जन-साधारण मातापिता-राजादिका ग्रहण नहीं, तृतीय अध्ययन न भयादिकी दृष्टिके बिना सञ्चारित्रका-पात्र और ध्येय ८३ शिष्टाचारादिके रूपमें लो- चारित्रके ध्येयका स्पष्टीकरण ८४ कानुवर्ति विनयादिकका यहाँ । प्रतिपद्यमानचारित्रका लक्षण ८५ निषेध है। .... ६६ चारित्रके भेद और स्वामी ८६ मोक्षमार्गमें सम्यग्दर्शनका व्रतभेदरूप गृहस्थ-चारित्र ८८ . स्थान (कर्णधारके समान) ६६ अणुव्रत-लक्षण ७६
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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