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________________ समीचीन-धर्मशास्त्र अनाकांक्षणाऽङ्ग-लक्षण ४८ वात्सल्याङ्ग-लक्षण ५४ सुखके कर्म-परवशादि विशेषण प्रतिपत्तिके तीन विशेषणपदों उसकी निःसारताके द्योतक ४६ की दृष्टिका स्पष्टीकरण ५४ निर्विचिकित्सिताङ्ग-लक्षण ४६ प्रभावनाङ्ग-लक्षण ( दृष्टिके शरीरके स्वभावसे अशुच तथा स्पष्टीकरण -सहित ) ५५ बादको रत्नत्रयगुणोंके योग- कोरी धन-सम्पत्ति की नुमासे पवित्र होनेका फलितार्थ ४६ इशका नाम प्रभावना नहीं ५५ अमूढदृष्टिअंगका लक्षण ५० अंगोंमें प्रसिद्ध व्यक्तियोंकुमार्ग और कुमार्गस्थितका स्प- के नाम ... ५६ प्टीकरण, कुमार्गमें स्थित- अंगहीन सम्यग्दर्शनकी की प्रशंसादिका निषेध कु- ___ असमर्थता .... मार्गमें स्थितिकी दप्टिसे है, लोकमूढ-लक्षण ... ५७ अन्य दृष्टिसे नहीं-एक । श्रेयः साधनादिकी दृष्टिसे भिन्न उदाहरण .... ५० दूसरी दृष्टिसे किये हुए उक्त उपगृहनाङ्ग-लक्षण स्नानादि कार्य लोकमूढतामें लक्षणोक्त विशेषणोंकी दृष्टिका । परिगणित नहीं ५७ स्पष्टीकरण, धूर्तजनोंके । देवतामूढ-लक्षण ( दृष्टिके द्वारा जान-बूझकर घटित की ___ स्पष्टीकरण -सहित) ५८ जानेवाली निन्दाके परिमा पाषण्डिमूढ-लक्षण ५६ जनादिका इस अंगसे सम्ब- 'पाषण्डिन्' शब्दके पुरातन मूल न्ध नहीं अर्थका और वर्तमान धूर्तादि जैसे विकृत अर्थका स्पष्टीस्थितीकरणाङ्ग-लक्षण ५२ करण; वर्तमान अर्थ लेनेसे यहाँ सम्यग्ज्ञानसे चलायमान होने अर्थका अनर्थ ... ५६ वालोंका ग्रहण क्यों नहीं ? स्मय-लक्षण और मद-दोष ६१ समाधान; इस अंग-स्वामीके | मदके स्थूल भेद आठ, सूक्ष्मभेद लिये 'धर्मवत्सल' और 'प्राज्ञ' प्रत्येक के अनेकाऽनेक-कुछ विशेषणोंकी आवश्यकता ५३ दिग्दर्शन
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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