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________________ समीचीन-शर्मशास्त्र पहलेसे समन्तभद्रके उक्त दो ही पद्य आत्मपरिचयको लिये हुए मिल रहे थे, परन्तु कुछ समय हुआ, 'स्वयम्भूस्तोत्र' की प्राचीन प्रतियोंको खोजते हुए, देहली-पंचायतीमन्दिरके एक अतिजीर्ण-शीर्ण गुटके परसे मुझे एक तीसरा पद्य भी उपलब्ध हुआ है, जो स्वयम्भूस्तोत्रके अन्तमें उक्त दोनों पद्योंके अनन्तर संग्रहीत है और जिसमें स्वामीजीके परिचय-विषयक दस विशेषण उपलब्ध होते हैं और वे हैं-१ आचार्य, २ कवि, ३ वादिराट् , ४ पण्डित (गमक ), ५ दैवज्ञ ( ज्योतिर्विद् ) ६ भिपक् (वैद्य ), ७ मान्त्रिक ( मन्त्रविशेषज्ञ), ८ तान्त्रिक ( तन्त्रविशेषज्ञ), ६ आज्ञासिद्ध और १० सिद्धसारस्वत । वह पद्य इस प्रकार है :-- आचार्योह कविरहमहं वादिराट् पण्डितोहं दैवज्ञोहं भिषगहमहं मान्त्रिकस्तान्त्रिकोहं । राजन्नस्यां जलधिवलयामेखलायामिलायाम्प्राजासिद्धः किमिति वहना सिद्धसारस्वतोहं ॥३॥ यह पद्य बड़े ही महत्वका है । इसमें वर्णित प्रथम तीन विशेपण-श्राचार्य, कवि और वादिराट-तो पहलेसे परिज्ञात हैं-अनेक पूर्वाचार्योंके ग्रन्थों तथा शिलालेखोंमें इनका उल्लेख मिलता है। चौथा 'पण्डित' विशेषण आजकलके व्यवहारमें 'कवि' विशेपणकी तरह भले ही कुछ साधारण समझा जाता हो परन्तु उस समय कविके मूल्यकी तरह उसका भी बड़ा मूल्य था और वह प्रायः 'गमक' (शास्त्रोंके मर्म एवं रहस्यको समझने तथा दूसरोंको समझाने में निपुण ) जैसे विद्वानोंके लिये प्रयुक्त होता था। अतः यहाँ गमकत्व-जैसे गुणविशेषका ही वह द्योतक है। शेष सब विशेषण इस पद्यके द्वारा प्रायः नये ही प्रकाशमें
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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