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________________ ८६ समीचीन-धर्मशास्त्र एक प्रकारसे मलकार स्वामी समन्तभद्रकी कृति तथा उनके द्वारा .. उद्धत अन्य कृतियोंके रूपमें सूचित किया गया है, वे सब भी मूलग्रन्थका कोई अंग न होकर दूसरे ग्रन्थोंसे दूसरोंके द्वारा अपनी किसी रुचिकी पूर्ति के लिये उठाकर रक्खे हुए पद्य हैं, जो बादको असावधान प्रतिलेखकांकी कृपासे ग्रन्थमें प्रक्षिप्त होगये हैं। उनमें से दो-एक पद्य नमानेके तौर पर यहाँ दिये जाते हैं : (१) मद्य-पल-मधु-निशासन-पंचफली-विरति-पंचकाप्तनुतिः। - जीवल्या जलगालनमिति च क्वचिदष्टमूलगुणाः ॥ यह पद्य 'मद्यमांसमधु' नामक ६६वें पद्य के बाद उद्धृत 'मांसाशिशु दया नान्ति' नामक पदा के अनन्तर दिया है । इसमें दूसरे प्रकारके अष्टमूलगुणांका मतभेद के रूपमें उल्लेख है और जो ग्रन्थसन्दर्भके साथ किसी तरह भी सुसम्बद्ध नहीं है । यह पद्य वास्तव में पं० आशाधरजीके सागारधर्मामृतका पद्य है और वहाँ यथास्थान स्थित है । कारंजाकी दूसरी प्रतिमें इस तथा इससे पूर्ववर्ती 'मांसाशिपु' पद्य दोनोंको 'उक्तं च' रूपसं उद्धृत किया भी है। (२) देवपूजा गुरूपास्तिः स्वाध्यायः संयमस्तपः। दानं चेति गृहस्थानां पटकर्माणि दिनेदिने ॥ यह पद्य 'नवपुण्यैः प्रतिपत्तिः' नामक ११३ वें पद्यके बाद जो चार पद्य 'खंडनी पेषनी चुल्ली' इत्यादि 'उक्तं च' रूपसे दिये हैं उनमें दूसरा है, शेष तीन पद्य वे ही हैं जो आरा-भवनकी उक्त प्रतियोंमें पाये जाते हैं, प्रभाचन्द्रकी दीकामें भी उद्धृत हैं और कारंजाकी दूसरी प्रतिमें जिन्हें 'उक्तं च त्रयं' रूपसे दिया है और इसलिये जो मलग्रन्थके पद्य नहीं हैं । उनके साथका यह चौथा पद्य ग्रन्थ-संदर्भके साथ असंगत होनेसे मूलग्रन्थका पद्य नहीं हो सकता, पद्मनन्दि-श्रावकाचारका जान पड़ता है। (३) ज्ञानवान् ज्ञानदानेन निर्भयोऽभयदानतः। अन्नदानात्सुखी नित्यं निर्व्याधिर्भेषजाद्भवेत् ॥ ..
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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