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________________ ६४ विवाह-क्षेत्र-प्रकाश। देहलीसे,जहाँ श्रापका अक्सर निवास रहता है, प्रकाशित होने वाली सभी पुस्तकों तथा ग्रन्थोंको-परिचय, इच्छा, और संप्राप्ति श्रादिके न होत हुए भी पढ़ा होगा और आपको उनका पूर्ण विषय भी कण्ठस्थ होगा! रही लेखककी ग्रंथोंके पढ़ने की बात, यद्यपि उसका अधिकांश समय प्रन्थोके पढ़ने और उनमेंसे अनेक तत्वों तथा तथ्योंका अनुसंधान करने में ही व्यतीत होता है, फिर भी घह देववन्दसे प्रकाशित हुए ऐसे साधारण सभी गन्थोंको तो क्या पढ़ता, स्वयं उसकी लायब्रेरीमें पचासो अच्छे ग्रंथ इस धक्त भी मौजूद है जिन्हें परी तौर पर अथवा कुछको अधूरी तौर पर भी पढ़ने देखने का अभी तक उसे अवसर नहीं मिल सका। इसलिये समालोचकजीका उक्त आक्षेप व्यर्थ है और यह उनके दुरागृहको सूचित करता है। यहाँ तकके इस सब कथनसे यह बिलकुल स्पष्ट हो जाता है कि देवकी न तो कुरुवंशमें उत्पन्न हुई थी, न सके मामाकी लड़की थी और न वैसे ही कंसद्वारा कल्पना की हुई बहन थी, बल्कि यह कंसके पिता उग्रसेनके सगे भाई अथवा कंसके सगे चचा देवसेनकी पुत्री थी--यदुवंशमें उत्पन्न हुई थीऔर इसी लिये नृप भोजकवृष्टि (या नर वृष्णि) तथा भोजकवृष्टि के भाई अंधकवृष्टि ( वृष्णि ) की पौत्री थी और उसे अंधकवृष्टि के पुत्र वसुदेव की भतीजी समझना चाहिये । इसी देवकीक साथ वसदेवका विवाह होने से साफ जाहिर है कि उस वक्त एक कदम्बमें भी विवाह हो जाता था और उसके मार्गमें आज कल जैमी गोत्रोंकी परिकल्पना कोई वाधक नहीं थी। अग्रवाल जैसी समृद्ध जाति भी इन्हीं कोम्बिक विवाहोंका परिणाम है। उसके श्रादिपरुषराजा अगसेनके सगे पोते पोतियों का-अथवा यो कहिये कि उसके एक पुत्रकी संततिका दूसरे पुत्रकी संततिके साथ-आपसमें विवाह हुआ था। आजकल
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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