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________________ विवाह-क्षेत्र प्रकाश। करके उसे पाठकों के सामने रख दिया है । " देवकभूपतेः" की जगह “ देवकिपतेः " पाठ देकर आपने देवकी के पिता का नाम 'देवकी' बतलाया है परन्तु वह — देवक' हैदेवकी नहीं हिन्दुओ के यहाँ भी देवकी के पिता को नाम 'देवक' दिया है और उसे कंसके पिता उग्रसेनका सगा भाई भी लिखा है; जैसा कि उनके महाभारतान्तर्गत हरिवंशपुराण के निम्न वाक्यों से प्रकट है: आहुकस्य तु काश्यायां द्वौ पुत्रौ संबभवतुः ।। २६॥ देवकश्योग्रसेनश्च देवपुत्रसमावुभौ । देवकस्याभवन्पुत्राश्चत्वारस्त्रिदशोपमाः ॥ २७ ।। देववानुपदेवश्च सुदेवो देवरक्षितः। कुमार्यः सप्तचाप्यासन्वसुदेवाय ता ददौ ॥२८॥ देवकी शांतिदेवा च सुदेवा देवरक्षिता । वकदेव्युपदेवीच सुनााम्नीचैव सप्तमी ।। २६ ॥ नवोग्रसेनस्य सुतास्तेषां कंसस्तु पूर्वजः । न्यग्रोधश्चसुनामा च कंकः शंकुः सुभमिपः ॥३०॥ -३७ वां अध्याय । और इस लिये देवक देवसेन का ही लघुरूप है । उसी संघ नाम से यहाँ उसका उल्लेख किया गया था जिसे समा. लांच कजी ने नहीं समझा और देवकी के पिता को भी देवकी बना दिया ! " वासुदेवाय" पाठ भी अशुद्ध है, उसका शुद्ध रूप है “ वसुदेवाय” तभी · वसुदेव को' देवकी के दिये जाने का अर्थ बन सकता है अन्यथा, 'वासदेवाय ' पाठ से तो यह अर्थ हो जाता है कि देवकी 'घासुदेव' को घसुदेव
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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