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विवाह क्षेत्र प्रकाश ।
यह स्वप्न देख रहे हैं कि उसमें देवकी को कंसके मामाकी पुत्री लिखा है और उसीके निम्न वाक्योंके श्राधारपर यह प्रतिपादन करना चाहते हैं कि देवकी कंसके मामाकी लड़की थी, इस लिये कंस उसे बहन कहता था और इसीसे जिनसेनाचार्यने, हरिवंशपुराण में, उसे कंसकी बहन रूप से उल्लेखित किया है:
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ततः स्वयं समादाय पितुः राज्यं स कंसवाक् । गौरवेण समानीय वसुदेवं स्वपत्तनम् ॥ ८६ ॥ तदा मृगावतीदेश भुर्भुजादेशनं ( 2 ) पुरत् । कंसमातुलजानीता [] धनदेव्या [व्यां] समुद्भवा[व] ॥ ८७ देवकी [कीं] नामां[तः] कन्यां कांचिदन्य[न्यां] सुरांगना [न]। महोत्सवैर्ददौ तस्मै सोपि सार्धं तया स्थितः ॥ ८८ ॥
इन पद्य में से मध्यका पद्य नं० ८७, यद्यपि, ग्रन्थकी सब प्रतियों में नहीं पायाजाता- देहलीके नये मंदिर की एक प्रतिमें भी वह नहीं है और न इसके अभाव से ग्रन्थके कथनसम्बंध में ही कोई अन्तर पड़ता है; हो सकता है कि यह 'क्षेपक' हो । फिर भी हमें इस पथ के अस्तित्व पर आपत्ति करने की कोई ज़रूरत नहीं है । इसमें 'कंसमातुलजानीतां' नामका जो विशेपण पद है उससे यह बात नहीं निकलती कि देवकी कंसके मामाकी लड़की थी, बल्कि कंसके मातुलपुत्र द्वारा वह लाई
मृतुकालविडंबितम् ॥ ७१ ॥ " वरमज्ञातवृत्तान्तः प्रददौ स्वच्छधीः स्वयं । तथेत्युक्षा स्वसुर्भातृगेहे किंच न कुत्सितं ॥ ८० ॥" - १२ वाँ सर्ग । *इस प्रकारकी ब्रैकटोंके भीतर जो पाठ दिया है वह शुद्ध पाठ है । और ग्रंथकी दूसरी प्रतियोंमें पाया जाता है ।