SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कुटुम्ब में विवाह। इसका स्पष्ट अर्थ यहीहोता है कि कंसने अपने चचा देवसेन की पुत्री देवकी वसुदेवसे व्याही । भावनगरको एक पुरानी जीर्ण प्रतिमे, प्रथम पद्यमें पाएहुए 'देवसेन' नाम पर टिप्पणी देते हुए, लिखा है___ "उग्रसेन-देवसेन महासेनास्त्रयो नरवृष्णेः पुत्रा ज्ञातव्याः" अर्थात्-उग्रसेन, देवसेन, और महासेन ये तीन *नरवृष्णि (भोजकवृष्टि) के पुत्र जानने चाहिये। इससे उक्त अर्थका और भी ज्यादा समर्थन हो जाता है और किसी संदेहको स्थान नहीं रहता । अस्तु : यह देवसेन मृगावती देशके अन्तर्गत दशार्णपर के राजा थे, 'धनदेवी' इनकी स्त्री थी और इसी धनदेवी से देवकी उत्पन्न हुई थो; ऐसा उत्तरपुराणके निम्नवाक्य से प्रकट है :--- मृगावत्याख्यविषये दशार्णपुरभूपतेः ।। देवसेनस्य चोत्पन्ना धनदेव्याश्च देव की । -७२ वाँ पर्व। और इस लिये ब्रह्मनेमिदत्तके नेमिपुराण, जिनदास ब्रह्मचारी के हरिवंशापुराण भट्टारक शुभचन्द्र के पाण्डवपुराण और भ. यशःकीर्ति के प्राकृत हरिवंशपगणमें देवकी के पिता, धनदेवीके पति और दशाण परके राजा रूपसे जिन देवसेनका उल्लेख पाया जाता है और जिनके उल्लेखोकी, इन ग्रन्थोंसे, समालोचनामें उद्धृत किया गया है वे येही राजा उग्रसेनके भाई देवसेन है-उनसे भिन्न दूसरे कोई नहीं है । नेमिपुराणमें तो उत्तर पुराणकी उक्त दोनो पंक्तियाँभी ज्योकि त्यो उद्धृत पाई जाती है बल्कि इनके बाद की 'त्वंसा नन्दयशा स्त्रीत्वमुप * उत्तरपुराणमें भोजकवृष्टि (वृष्णि) की जगह नरवृष्णि या नरवृष्टि ऐसा नाम दिया है।
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy