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________________ कुटुम्बमें विवाह | जातभ्राता । तत्पर्याय:--, सहजः, सोदरः, भ्राता, सगर्भः, समानोदर्यः, सोदर्यः इति जटाधरः ।" वामन शिवराम एंप्टे ने भी अपने कोश में इसी अर्थका विधान किया है । यथा : "सोदर . [ समानमुदरं यस्य समानस्य सः] Bora from the same womb (गर्भ, गर्भाशय), uterine. --रः a uterine brother.” ७७ "" "Uterine, सहोदर, सोदर, समानोदर, सनाभि. ऐसी हालत में, देवकी कंस की बहन ही नहीं किन्तु सगी बहन हुई और इसलिये उसे राजा उग्रसेन को पुत्री, नृप भाजकवृष्टि की पौत्री, महाराजा सुवीर की प्रपौत्री और ( सुवीर के सगे भाई सूर के पांत ) वसुदेव की भताजी कहना कुछ भी अनुचित मालूम नहीं होता । वंशावली के बाद के इन्हीं सब खण्डउल्लेखों को लेकर देवकी को राजा उग्रसेनकी पुत्री लिखा गया था । परन्तु हाल में जिनसेनाचार्य के हरिवंशपुराण से एक ऐसा वाक्य उपलब्ध हुआ है जिससे मालूम होता है कि देवकी खास उग्रसेन की पुत्री नहीं किन्तु उग्रसेनके भाई की पुत्री थी और वह वाक्य इस प्रकार है : प्रवर्द्धतां भ्रातृशरीरजायाः सुतोऽयमज्ञय मरे रितीष्टां । तदग्रसेनमभिनं वाचममू विनिर्जग्मतुराशु पुर्याः ||२६|| - ३५ वां सर्ग । यह वाक्य उस अवसर का है जब कि नवजात बालक कृष्णको लिये हुए वसूदेव और बलभद्र दोनों मथुरा के मुख्य द्वार पर पहुंच गये थे, बालक की छींक का गंभीर नाद होने पर द्वार के ऊपर से राजा उग्रसेन उसे यह आशीर्वाद दे चुके
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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