SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७५ कुटुम्बमें विवाह । अभ्यर्थ्य गुरुमानीय मथुरा पृथुभक्तितः । स्वसारं प्रददौ तस्मै देवकी गुरुदक्षिणाम् ।। २६ ।। टीका-"कंस मथुराका राज पाय पर विचारी यह सब उपगार वसुदेवका है । सो मैं हू याकी कुछ सेवा करूँ ॥२८॥ तब प्रार्थना करि वसुदेव क महाभक्तिते (सं) मथुराविर्षे लाया श्रर अपनी बहन देवकी वसुदेवकं परनाई ॥ २६ ॥" "जातु चिन्मुनिवेलायामतिमुक्तकमागतम् । कंसज्येष्ठं मुनि नत्वा पुरःस्थित्वा सविभ्रमम् ॥३२॥ हसंती नर्म भावेन जगौ जीवद्यशा इति । आनन्दवस्त्रमेतत्ते देवक्याः स्वसुरीक्षताम् ॥३३॥" टीका--"एकदिन श्राहारके समै कंसके बड़े भाई अतिमुक्तक नामा मुनि कंसके घर आहार क आए ॥ ३३॥ तब नमस्कार करि जीवंयशा चंचल भावकरि हँसती थकी देवकी के रजस्वलापनेके वस्त्र स्वामीके समीप डारे पर कहती भई । ए तिहारी वहनके आनंदके वस्त्र हे सो देषहु ।। ३४ ॥" "भविता योहि देववया गर्मेऽवश्यमसौ शिशुः । पत्युः पितुश्च ते मन्यरितीयं भवितव्यता ॥ ३६॥" ततो भीतमतिर्मकन्वा मुनि साश्रुनिरीक्षणा । गत्वा न्यवेदयत्सैतत्सत्यं यतिभापितम् ।। ३७॥" श्रुत्वा कंसोपि शंकावानाशु गत्वा पानतः । वसुदेवं वरं वत्रे नीवधीः सत्यवाग्व तम् ॥ ३८ ॥ स्वामिन्वरप्रसादो में दानव्यो भवता ध्रुवम् । प्रसतिसमये वासो देवक्या मद्गृहेऽस्त्विति ॥ ३६॥ .
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy