SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६६ विवाह- क्षेत्र प्रकाश 1 के उदाहरणको प्रारंभ करते हुए दिया था । उसमें 'उग्रसेन' की जगह 'देवसेन' बना देने से वह उक्त उल्लेख पर भी ज्योकी त्यों घटित हो सकती है । इस वंशावली में श्रागे समुद्र विजयादि तथा उग्रसेनादिकी संततिका कोई उल्लेख नहीं है । उसका उल्लेख ग्रन्थ में खंडरूप से पाया जाता है और उन खंड कथनों परसे ही देवकी नृप भाजकवृष्टिकी पौत्री तथा राजा मुत्री की प्रपौत्री और इसलिये वसुदेवको 'भतीजी' निश्चित होती है । यहाँ, उन खण्डकथनों का उल्लेख करनेसे पहले, मैं अपने पाठकों को इतना और बतला देना चाहता हूं कि, यद्यपि, भाषा हरिवंशपुराण के पृष्ट ३३६ और ३६५ वाले उक्त दोनों उल्लेखों परसे यह पाया जाता है कि पं० गजाधरलालजीने देवकीको राजा उग्रसेनके भाई देवसेन (राजा) की पुत्री बतलाया है और देवसेनकी स्त्रीका नाम 'धन्या' ( धनदेवी ) तथा उनके बासस्थानका नाम 'दशार्णपुर प्रकट किया है परन्तु उनका यह कथन सन १६१६ का है, जिस सालमें कि उनका भाषा हरिवंशपुराण प्रकाशित हुआ था। इससे करीब तीन वर्ष बाद सन १६१६ में 'पद्मावती पुरवाल के द्वितीय वर्ष के पूर्व श्रंक में 'शिक्षाप्रद शास्त्रीय उदाहरण' नांमके प्रकृत लेखपर अपना विचार प्रकट करते हुए, उन्होंने स्वयं देवकीको राजा उग्रसेन की पुत्री और वसुदेवकी भतीजी स्वीकार किया है । आपके उस विचार लेखका एक अंश इस प्रकार है "जिस समय राजा वसुदेव यादि सरीखे व्यक्तियों का अस्तित्व पृथ्वीपर था, उस समय अयोग्य व्यभिचार नहीं था जिस स्त्रीको ये लोग स्वीकार करलेते थे उसके सिवाय अन्य स्त्रोको मा बहिन पुत्री के समान मानते थे इसलिये उस समय में देवकी और वसुदेव सरीखे विवाह भी स्वीकार कर लिये जाते थे । अर्थात्
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy