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________________ कुटुम्बमें विवाह। देवकीका पुत्र है मैं इसकी बात किसीको नहि कह सकता मेरी अंतरंग कामना है कि यह दिनोंदिन बढ़े और वैरीको इसका पता तक भी न लगे।" इस उल्लेखद्वारा यह स्पष्ट घोषणा कीगई है कि 'देवकी' उन देवसेनकी पत्री थी जो कंपके पिता उग्रसेनके भाई थे और इसलिये उग्रसेनकी पत्री होनेसे देवकी और घसदेवमें जो चचा भतीजीका सम्बंध घटित होता है वही देवसेनकी पुत्रो होनेसे भी घटित होता है-उसमें रंचमात्रभी अन्तर नहीं पड़ता क्योंकि उग्रसेन और देवसेन दोनों सगे भाई थे। फिर देवकीके भतीजी' होनेसे क्यों इनकार किया गया ? और क्यों इस उल्लेखको छिपाया गया ? क्या इसीलिये कि इससे हमारे सारं विरोध पर पानी फिर जायगा ? क्या यह स्पष्टरूपसे मायाचारी, चालाकी और अपने पाठकों को धोका देना नहीं है ? और क्या अपनी ऐसी ही सत्कृतियों (!) के भरोसे श्राप दूसरों पर मायाचारी, चालाकी तथा धोकादेही का इलजाम लगाने के लिये मुंह ऊंचा किये हुए हैं ? आपको ऐसी नीचकृतियों के लिये घार लजा तथा शर्म होनी चाहियेथी !! देवसेन राजा उग्रसेनके सगेभाई और वसुदेवके चचाजाद भाई थे, यह बात श्रीजिनसेनाचार्यके निम्न वाक्योंसे.प्रकटहै:-- उदियाय यदुस्तत्र हरिवंशोदयाचले । यादवप्रभवो व्यापी भूमौ भूपतिभास्करः ॥ ६॥ सुतो नरपतिः तस्मादुद्भद्भवपतिः ।। यदुस्तस्मिन्भुवं न्यस्य तपसा त्रिदिवं गतः ॥ ७ ॥ सुरश्चापि सुवीरश्च शरौ वीरौ नरेश्वरी। स तो नरपतिः राज्ये स्थापयित्वा तपोभजत् ॥ ८ ॥
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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