SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विवाह क्षेत्र प्रकाश । पर की गई है। देवकी का वसुदेव के साथ विवाह हुआ, इस बात पर, यद्यपि, कोई आपत्ति नहीं है परन्तु 'देवकी रिश्ते में वसुदेव की भतीजी थी' यह कथन ही आपत्ति का खास विषय बनाया गया है और इसे लेकर खूब ही कोलाहल मचाया गया तथा ज़मीन आस्मान एक किया गया है । इस आपत्तिपर विचार करने से पहले, यहां प्रकृत आपत्ति विषयक कथनका कुछ थोड़ा सा पूर्व इतिहास दे देना उचित मालूम होता है और वह इस प्रकार ५२ : ( १ ) सन् १६.० में, लाहौर से पं० दौलतराम जी कृत भाषा हरिवंशपुराण प्रकाशित हुआ और उसकी विषय-सूची में देवकी और वसुदेव के पूर्वोत्तर सम्बन्धको निम्न प्रकार घोषित किया गया : "वसदेवका अपने बाबाके भाई राजा सुधीरकी (पड़) पोती कंसकी बहन देवकीसं विवाह हुआ ।” इस घोषणा के किसी भी श्रश पर उस समय आपत्ति की कहीं से भी कोई आवाज़ नहीं सुन पड़ी । ( २ ) १७ फरवरी सन् १६१३ के जैन गजट में सरनऊ निवासी पं० रघुनाथदासजी ने, "शास्त्रानुकूल प्रवर्तना चाहिये” इस शीर्षक का एक लेख लिखा था और उस में कुछ रूढियों पर अपने विचार भी प्रगट किये थे । इस पर लेखककी ओर से " शुभ चिह्न " नाम का एक लेख लिखा गया और वह २४ मार्च सन् १९१३ के 'जैनमित्र' में प्रकाशित हुआ, इस लेख में पंडित जी के उक्त ' शास्त्रानुकूल प्रवर्तना चाहिये' वाक्य का अभिनंदन करते हुए और समाज में रूढियों तथा रस्म रिषाओं का विवेचन प्रारम्भ होने की आवश्यकता जतलाते हुए, कुछ शास्त्रीय प्रमाण पंडित जी की भेट किये गये थे और उन पर निष्पक्षभाव से विचारने को प्रेरणा भी की गई थी । उन
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy