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________________ विवाह-क्षेत्र प्रकाश। स्तंभका सहारा लेकर बैठे हुये ये पार्वतेय जातिके विद्याधर हैं ॥ २० ॥ जिनके भूषण बाँसके पत्तोंके बने हुये हैं जो सब ऋतुओके फूलों की माला पहिने हुये हैं और वंशस्तंभके सहारे बैठे हुये हैं वे वंशालय जातिके विद्याधर हैं ॥ २१ ॥ महासर्पके चिह्नोसे युक्त उत्तमोत्तम भूषणों को धारण करने वाले वृक्षमूल नामक विशाल स्तंभके सहारे बैठे हुये ये वाक्षमूलक जातिके विद्याधर हैं ॥ २२ ॥ इस प्रकार रमणो मदनवेगा द्वारा अपने अपने वेष और चिह्न युक्त भूषणोंसे विद्याधरोका भेद जान कुमार अति प्रसन्न हुये और उसके साथ अपने स्थान वापिस चले पाये एवं अन्य विद्याधर भी अपने अपने स्थान चले गये ॥ २३-२४ ॥" इस उल्लेख परसे इतनाही स्पष्ट मालम नहीं होता कि मातंग जातियोंके चाण्डाल लोग भी जैनमंदिरमें जाते और पूजन करते थे बल्कि यहभी मालूम होता है कि * स्मशानभूमि की हड्डियोंके आभूषण पहिने हुए, वहाँ की राख बदनसे मले हुए, तथा मृगछाला ओढे, चमड़ेके वस्त्र पहिने और चमड़ेकी मालाएं हायमें लिये हुए भी जैनमंदिर में जासकते थे. और न केवल जाहीसकते थे बल्कि अपनी शक्ति और भक्तिके अनुसार पूजा करने के बाद उनके वहाँ बैठने के लिए स्थान भी नियत था, जिससे उनका जैन मंदिरमें जानेका और भी ज्यादा नियत अधिकार पाया जाता है। । जान पड़ता है उस समय 'सिद्ध. यहाँ इस उल्लेख परसे किसीको यह समझने की भूल न करनी चाहिये कि लेखक श्राजकल ऐसे अपवित्र वेषमें जैम मंदिरों में जाने की प्रवति चलाना चाहता है। + थी जिनसेनाचार्य ने, ६ वी शताब्दी के पातावरणके अनुसार भी, ऐसे लोगों का जैनमंदिर में जाना मादि मापत्तिके
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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