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प्रकाशक के दो शब्द आज, अपनी पूर्वसूचना के अनुसार, उदाहरण' की समालोचना का विस्तृत उत्तर पाठकों के सामने उपस्थित हो रहा हूं, यह मेरे जगल ही आनन्द तथा हर्ष का विषय है । लेखक महोकिशोर जी ने इस उत्तर-लेखके लिखने में कितना पर्व श्रम किया है, कितना युक्ति-युक्त, प्रामाणिक तथा धिक उत्तर लिखाहै और इसके द्वारा विवाहक्षेत्र पर कितना प्रकाश डाला गया है, ये सब बाते प्रकृत पुस्तक को देखने ही सम्बन्ध रखती हैं । और इस लिये अपने पाठकों से मेरा यह सानुरोध निवेदन है कि वे इस पुस्तकको खूब गौर के साथ साधन्त पढ़नेकी ज़कर कृपा करें। इसके पढ़ने से उन्हें कितनी ही नई नई बात मालम पड़ेगी और वे विवाह की वर्तमान समस्याओं को हल करने में बहुत कुछ समर्थ हो सकेंगे। साथही उन्हें यहभी मालूम पड़ जायगा कि पं० मक्खनलालजी प्रचारक की लिखी हुई समालोचना कितनी अधिक निःसार. निर्मल, बेतुकी, बेढंगी, मिथ्या, तथा समालोचकके कर्तव्योसे गिरी हुई है और उसके द्वारा कितना अधिक भ्रम फैलाने तथा सत्य पर पर्दा डालने की जघन्य चेष्टा की गई है।
यहाँ पर में इतना और भी प्रकट करदेना उचित समझता हूं कि समालोचकजी ने समालोचना की 'भूमिका' में प्रकाशक के उद्देश्य तथा प्राशय ( मंशा) के विषय में जो कछ लिहै वह सब भी मिथ्या तथा उन्हों के द्वारा परिकल्पित है।
अन्तमें, लेखक महोदयका हृदय से आभार मानता हुआ, मैं उन सभी सज्जनों का सहर्ष धन्यवाद करता हूं जिन्होंने इस पुस्तक को प्रकाशित करने में सहायता प्रदान की है।
जौहरीमल जैन।