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________________ उपसंहार और निवेदन । व्यक्तित्वके प्रतिभी अपने पत्रों में अपशब्दों का प्रयोग किया है और इस तरह पर अपना ज़हर उगला है, उनसे व्याय प्रथया सद्विचार की कोई पाशा नहीं की जा सकती। ऐसे विद्वानोंके विषयमें मेरी यही भावना है कि 'उन्ह किसी तरह पर. अन्तः शुद्धि के द्वारा सद्बुद्धि की प्राप्ति हो और ये मेरे सदुद्देश्य तथा सदाशयको समझने में समर्थ होमके।' अन्तमें, मैं इतना और निवेदन कर देना उचित समझता इंकि मेरा विचार पहले से 'विवाह-क्षेत्र-प्रकाश' नामकी एक स्वतंत्र पुस्तक लिखने को था, समागचनाके उसरमै पड़कर मुझे उसको वर्तमान रूप देना पड़ा है और इससे उसका प्राकार भी दुगने के करीब बढ़ गया है। यदि समात ने इसे अपनाया और इसके प्रचारकी जरूरतको महसल किया तो दूसरे संस्करण के अवसर पर, इसकी प्रणालीको बदल कर तथा इसका उत्तरात्मक भाग अलग करके, इसे एक स्वतंत्र पुस्तक का रूप दिया जायगा और कितनी ही उपयोगी बात और भी इसमें बढ़ादी जायेंगी । इत्यलम् । जुगलकिशार मुख्तार । SA: म ALWARA
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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