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________________ विवाह क्षेत्र प्रकाश | अक्षमाला वसिष्ठेन संयुक्ताऽधमयोनिजा । शारङ्गी मन्दपालेन जगामाभ्यर्हणीयताम् ||२३|| एतावान्याच लोकेऽस्मिन्नपकृष्टपस्तयः । उत्कर्ष योषितः प्राप्ताः स्वैस्वर्भत गुणैः शुभैः ||२४|| 'इन श्लोकों में यह बतलाया गया है कि - " अधम योनिसे उत्पन्न हुई - निकृष्ट (अछूत जातिकी - अक्षमाला नामकी स्त्री बलिष्ठ ऋषि से और शारङ्गी नामकी स्त्री मन्दपाल ऋषिके साथ विवाहित होने पर पूज्यता का प्राप्त हुई। इनके सिवाय और भी दूसरी कितनी ही होन जातियोंकी स्त्रियाँ उच्च जातियों के पुरुषांक साथ विवाहित होने पर - अपने अपने भतार के शुभ गुणोंके द्वारा इस लोक में उत्कर्ष को प्राप्त हुई हैं।' और उन दूसरी स्त्रियों के उदाहरण में टीकाकार कुल्लूक भट्टजीने, “अन्याश्च सत्यवत्यादयो" इत्यादि रूपसे' सत्यवती' के नामका उल्लेख किया है । यह 'सत्यत्रती, ' हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, एक धीवर की - - कैवर्त्य अथवा श्रन्त्यज की कन्या थी । इसकी कुमाराषस्था में पराशर ऋषिने इससे भोग किया और उससे व्यासजी उत्पन्न हुए जो 'कानीन' कहलाते हैं । बादको यह भीष्म के पिता राजा शान्तनु से व्याही गई और इस विवाह से 'विविध' नामका पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसे राजगद्दी मिली और जिसका विवाह राजा काशीराज की पुत्रियों से हुआ । विचित्रवीर्थ के मरने पर उसकी विधवा स्त्रियों से व्यासजी ने, अपनी माता सत्यवती की अनुमति से भोग किया और पाण्डु तथा धृतराष्ट्र नामके पुत्र पैदा किये, जिनसे. पाण्डयों श्रादि की उत्पत्ति हुई । इस तरह पर हिन्दू शास्त्रों में हीन जातिकी अथवा शूद्रा स्त्रियोंसे विवाह कितने ही उदाहरण पाये जाते हैं और उनकी संतति से अच्छे अच्छे पुरुषों तथा वंशका उद्भव होना भी १६२ •
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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