SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२२ विवाह क्षेत्र प्रकाश । आक्षेप किये हैं वे सब मिथ्या तथा व्यर्थ हैं और उनकी पूरी नासमझी प्रकट करते हैं। अब उदाहरण के तृतीय अंश - प्रियंगु सुन्दरीसे विवाह'को लीलिये । व्यभिचारजातों और दस्सोंसे विवाह | लेखकने लिखा था कि " - प्रियंगुसुन्दरीके पिताका नाम 'पीपुत्र' था । यह एणीपुत्र 'ऋषिदत्ता' नामकी एक अविवा हिता तापस कन्यासे व्यभिचारद्वारा उत्पन्न हुआ था । प्रसत्रसमय उक्त ऋषिदत्ताका देहान्त हो गया और वह मरकर देवी हुई, जिसने एणी प्रथांत् हरिणीका रूप धारण करके जगलमें अपने इस नवजात शिशुको स्तन्यपानादिसे पाला और पाल पोषकर अन्तको शीलायुध राजाके सपुर्द कर दिया । इससे प्रियंगुसुन्दरीका पिता पणापुत्र व्यभिचारजात' था, जिसकी श्राज कलकी भाषा में 'दस्ता' या 'गाटा' भी कहना चाहिये । वसुदेवजीने विवाह के समय यह सब हाल जान करभी इस विवाहको किसी प्रकारसे दूषित, अनुचित, अथवा अशास्त्र सम्मत नहीं समझा और इस लिये उन्होंने बडी खुशी के साथ .प्रियंगु सुन्दरीका भी पाणिग्रहण किया ।" उदाहरण के इस श्रंश पर जो कुछ भी आपत्ति की गई है उसका सारांश सिर्फ इतनाही है कि एणीपुत्र व्यभिचारजात नहीं था किन्तु गन्धर्व विवाहसे उत्पन्न हुआ था । परन्तु ऋषिदत्ताका शीलायुधसे गंधर्व विवाह हुआ था. ऐसा उल्लेख जिनसेनाचार्य ने अपने हरिवंशपुराण में कहाँ किया है, इस बातको समालोचकजी नहीं बतलां सके । आपने उक्त हरिवंशपुराण के आधार पर कई पृष्ठों में ऋषिदत्ता की कुछ विस्तृत कथा देते हुए
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy