SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ म्लेच्छों से विवाह | १०३ कुल सौभाग्ययोर्ने प्रतिबन्धोस्ति कश्चनः ।। ५५ ।। - हरिवशपुराण, ३१वाँ सर्ग 1 पं मजधरलालजी ने इस पद्यका अनुवाद यो किया है :"कोई कोई महाकुलीन होने पर भी बदसूरत होता है :-- दूसरा कुलीन होनेपर भी बड़ा सुन्दर होता है इस लिये कुनीन और सौभाग्य की आपस में काई व्याप्ति नहीं अर्थात् जो कुलीन हां वह सुन्दर हो हो और अलोन बदसूरत ही हो यह कोई नियम नहीं इसके सिवाय, जैनशास्त्रों में भीलकन्याओं से विवाह के स्पष्ट उदाहरण भी पाये जाते हैं, जिनमें से एक उदाहरण राजा उपश्रेणिक का लीजिये । ये राजा श्रोणिकके पिता थे । इन्हें एक बार किसी दुष्ट अश्वने लेजाकर भीलोकी पल्ली में पटक दिया था । उस पल्लीके भील राजाने जब इन्हें दुःखितावस्था में देखा तो वह इन्हें अपने घर लेगया और उसने दवाई भोजन पानादि द्वारा सब तरहसे इनका उपचार किया। वहाँ ये उसकी 'तिलकसुन्दरी' नामकी पुत्री पर शासक हा गये और उसके लिये इन्होंने याचना की । भील राजाने उपश्रोणिक से अपनी पुत्रीके को राज्य दिये जाने का वचन लेकर उसका विवाह उनके साथ कर दिया और फिर उन्हें राजगृह पहुँचा दिया । यथाःउपश्रेणिको(क१) वैरिनृपसोमदेव पितदुष्टाऽश्वेनोपश्रेणिको नीत्वा भिल्लपल्यां क्षिप्तो दुःखितो भिल्लराजेन दृष्टोगृहमानीत उपचरितः । तत्सुत्यं तिलकसुंदरीमीक्षित्वा तां तं ययाचे । एतस्या खुतं राजानं करिष्यामीति भाषां नीत्वा परिणाय्य तेन राजगृहं प्रापितः । 1 - गद्य श्रेणिक चरित्र, ( देहली के नये मंदिरकी पुरानी जीर्ण प्रति) | 21
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy