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________________ | (९२) आर्यमतलीला। काले कौनों और वर्षके लिये बढे २ अर्पण कर देना चाहिये और यदि कसुन्दर २ पंखों वाले पक्षियोंको अच्छे रना चाहिये तो किस प्रकार ? ॥ प्रकार प्राप्त होता है वैसे तुम भी तुम ऋचा ३१ प्रचार . इमको प्राप्त होगी। . __ "हे मनुष्यो ! तुमको प्रजापति देवता | वाला किंनर निन्दित ममाय और जो "हे मनुष्यो ।जैसे भूमि के जंतुनोंके | छोटा कीड़ा विशेष सिंह और बिलागुगा जानने वाला पुरुष भूमि के लिये | र हैं वह धारणा कर ने वाले के लिये मूषों अन्तरिक्ष के लिये पंक्ति सपके | | उजली चील्ह दिशात्रोंके हेतु धुला चलने वाले विशेष पक्षियों प्रकाश के | नामकी पक्षिणी अग्नि देवता वाली लिये का नाम के पक्षियों पूर्वप्रादि जो चिरौटा लाल सांप और तालाव दिशाओं के लिये मेडलों और प्रबा में रहने वाला है वे मब स्वष्टा देवता न्तर अर्थात् कोसा दिशाओं के लिये भी घाले तथा पानी के लिये सारस खान भरे विशेष नेवलों को अच्छे प्रकार ना चाहिये।,, प्राप्त होता है वैसे तुम भी प्राप्त होगी | ऋचा ३२ ऋचा २७ "हे मनुष्यो ! जैसे पशुओं के गुणोंका | “हे मनुष्यो ! यदि तुमने सोम के लिये जानने वाला जन अग्नि प्रादि वसुओं जो कुलंग नामक पशु बा बनेला बकके लिये ऋश्य जातिके हरिणों प्राण रा न्योला और सामर्थ्य वाला विशेष प्रादि रुद्रों के लिये रोज नामी जंतु पशु हैं वे पुष्टि करने बामे के सम्बन्धी या विशेष सियार के हेतु सामान्य श्री बारह महीनों के लिये न्यङकु ना मक पशुओं समस्त दिव्य पदार्थों वा सियार वा ऐश्वर्य युक्त पुरुष के अर्थ गोरा हिरण वा जो विशेष मग किसी विद्वानोंके लिये पृषत् जाति के मृग विशेषों और सिद्ध करने के योग्य और जासिका हरिण और कुट भान हैं उनके लिये कलङग नाम के पश|का मृग है वे अनुमति के लिये तथा विशेषों को अच्छे प्रकार प्राप्त होता | सुने पीछे सुनाने वाली के लिये चकर है वसे इन को तुम भी प्राप्त होमो।,, | चकवा पक्षी अच्छे प्रकार पक्ति किये (नोट ) पपा बारह महीमोंको भो| जावें तो बहुत काम करने को समर्थ अग्नि वायु आदि के समान देवता | हो सके। माना है। और बारह महीने के वा- (नोट) सोमको अाग्वेद में एक प्रकास्ते म्याकु नाम का पशु रिस कारण |र की बनस्पति वर्णन किया है जिस से नियत किया है ? उम पशु को वा| को सिल बडे से पीसकर और पानी र महीने वाले देवता के नाम पर और दूध और मिगई मिलाकर मद
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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