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________________ । आर्यमतलीला ॥ (६१) ऋचा २०। | नस्पति अर्थात् विना पुष्प फल देने वाले "हे मनुष्यो ! पत्तियोंको जामने वा-पक्षोंके लिये उल्ल पक्षियों अग्नि और ला जम बसन्त ऋतुके लिये जिन कपि- मोनके लिये नीलकंठ पक्षियों सूय चन्द्रजल नामके विशेष पक्षियों ग्रीष्म ऋतु माके लिये मयूरों तथा मित्र और वरुपये के लिये चिरोटा नामले पक्षियों वर्षा | लिये कबतरों को अच्छे प्रकार प्राप्त जितुझे लिये तीतरों शरद ऋतुके लिये होता. बेले. इनको तुम भी प्रास बतकी हेमन्त ऋतुके लिये ककर मामलो ।" पक्षियों और शिशिर ऋतु के अर्थ बिककर नाम के पक्षियों को अच्छे "हे ममाप्यो । जैसे पक्षियों का काम प्रकार प्राप्त होता है उन को तुम जा-जानने वाला जन ऐश्वर्य के लिये बनो। ऋचा २१ टेरों प्रकाश के लिये कोलीक नामक "ममन्यो ! जैसे जलके जीवोंको पक्षियों विद्वानों को त्रियों के लिये | पालना करनेको जानने वाला जम म. हा जलाशय समुद्र के लिये जो अपने नो गौओंको मारती हैं उन परियों बालकों को मार डालते हैं उन शिशु विद्वानों की बहिनियोंके लिये कुली क नामक पखेरियों और जो अग्निके मारों मेघके लिये मेहको जालोंके लिये मालियों मित्रके समान सुख देते हुए समान वर्तमान यह पालन करनेवाला सूर्य के लिये कुस्लीपन मामके जंगली प. उसके लिये पारुष्य पक्षियों को प्राप्त शुओं और बरूण के लिये नाके मगर होता है वैसे तुम भी प्राप्त होगी।,, जल जन्तुओंको अच्छे प्रकार प्राप्त होता (नोट) ममझ में नहीं माया कि है वैसे तुम भी प्राप्त होगी।" विद्वानों की त्रियों के वास्ते गौनों का मारने वाला कौन सा पक्षी बता. ऋचा २२ __ "हे मनायो ! जैसे पक्षियोंके गणका या है और है और किम कार्य के अर्थ? विशेष जान रखने वाला पुरुष चन्द्रमा | और बिद्वानों की वहमोंके वास्ते कोन वा बोषधियों में उत्तम सोम के लिये | सा पक्षी नियत किया गया है और हंसों पवनके लिये बगलियों इन्द्र और किस काम के वास्ते ? ॥ शनिके लिये सारसों मित्रके लिये जास्त ऋचा९२५ । के कनवों वा सुतरमुगों और बरुणके "हे मनुष्यो ! जैसे काल का जानने लिये चकई चकवों को अच्छे प्रकार प्रा-बाला दिवस के लिये कोमल शब्द क प्त होता है वैसे तुम भी प्राप्त होनो।" रने वाले कबतरों रात्रि के लिये सीऋचा २३ चापू नामक पक्षियों दिन रात्रि के स" हे मनुष्यो । जैसे पक्षियोंके गुण | धियों अर्थात् प्रातः सायंकालके लिये | जानने वाला जन अग्निके लिये मुर्गों ब- 'जतू नामक पक्षियों महीनोंके लिये | -
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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