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________________ - आर्यनसलीला (१) सष्टि के श्रादि में प्रथम पषिधी उत्प-1 है बरमा पृथक पृषक गोल हैं जो सूक्त। म की और फिर बिना मा बापके इम | कहलाते हैंपृथिवी पर करते फांदते अवान मन- ऋग्वेद सप्तम मंडल सूक्त २९ ऋचा । प्य तत्पन्न कर रिये । वह मनुष्य म-1 "आप हमारे पिता केसमान जानी थे और बिना मिखाये उनको | उत्तम बद्धि वाले हैं। कह नहीं पा सकता था। इस कारण | ऋग्वेद छठा मंडल सूक्त ४४ ऋचा २२ परमेश्वर ने चार वेदों के द्वारा तमको “हे राजन् जो पह मानन्द कारक सर्व प्रकार का ज्ञान दिया। अपने पिता के शस्त्र और प्रक्षों शोक है कि स्वामीजी ने इस प्रकार को स्थिर करता है." कथन तो किया परन्तु यह न बताया ऋग्वंद प्रथम मंडल सूक्त १३२ ऋ०१ । कि उनकी इस बात का प्रमाण क्या "अगले महाशयों ने किये धन के है ? और इस बात का बोध उन को निमित्त मनप्यों के समान आपरख कहां से हुआ कि मष्टि की श्रादि में करते हुए मनुष्यों को निरंतर सहें।" | बिना मा बाप मे उत्पम मनुष्यों को ऋग्वेद प्रथम मंडुल्म सूक्त १३४ ऋ० ।। वटों के द्वारा शिक्षा दी गई ? खामी | “मोम को अगले सज्जनों के पीने | जी ने ऋग्वंद का अर्थ प्रकाश किया के समान जो पीता है।" है जिस से स्पष्ट विदित होना है कि ऋग्वेद प्रथम मंडल सूक्त १३९ १०८ | सष्टि की आदि में बिना मा बाप के । “हे ऋतु २ में यह करने वाला उत्पन्न हुवे मनुष्यों को पदों के द्वारा इस विद्वानो तुम्हारे वे सनातन पुरुषों में | उपदेश नहीं दिया गया है घरन खा | उत्तम बल हम लोगों से मशतिरस्कृतहों मी जी ने जो अर्थ वेदोंके किये हैं उन | ऋग्वेद दूसरा मंडल सूक्त २ प्रा.८ | ही अर्थों से ज्ञात होता है कि घेद के द्वारा उन मनुष्यों से मम्शोधन है जो पूवज विद्वामोंने विद्या पदा मा बाप से उत्पन्न हुवे ये, और जिनसे | कर किये विद्वाम वाप” पहले बहुत विद्वान् लोग दो पके हैं और अग्यद दूसरा मंडल सूक्त २० ० ५ उन पूर्वज बिद्वानों के नागकन्न वेद के |"पूर्वाचाय्यों ने किई हुई स्तक्तियों गीतों का बनाने वाला गीत मना रहा को बढ़ावे यह पुरुषार्थी जन हमारा है-हम इस विषय में विशेष न लिखकर | रमक हो । स्वामी दयानन्द जी के अर्थों के अनु- ऋग्वेद दूसरा मंडल सूत्र १२ ऋ.४ सार वेदों के कुछ वाक्य नीलिखते। “वह प्रथम पूर्याचार्यों ने किया और यह हम पहले लिख चके हैं कि उत्तमता से कहने योग्य प्रसिद्ध सन-1 वेदों का मजमून सिलसिले बार नहीं । ज्यों में सिद्ध पदार्थ
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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