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________________ श्रार्यमतलीला || ( ५० ) जानता है वह पिपासासे व्याकुल के म और अन्तरिक्षमें चलने वाले के सत्य और असत्यके विभाग कर ने बालोंको प्राप्त होने वाला और काम ना करता हुआ हम लोगोंको सब पकार से प्राप्त होवे और प्राणों के देने वरचे दुग्ध का पान करे भावार्थ उसी को राजा नामो ० ६ ऋद पंचम मंडल सूक्त ६५ "बेदार्थ के जानने वाले हम लोगों का गौमों के पीने योग्य दुग्ध आदि में नहीं निरादर करिये " ऋग्वेद प्रथम मंडल सूक्त ५५ हे स्तुति को सुनने वाले ! सोन को पीने वाले सभाध्यक्ष ! ०७ ऋग्वेद प्रथम मंडल सूक्त ५० ऋ०५ हे सेनादि बल वाले सभाध्यक्ष छाप इस स्तुति करता के कामना को परिपूर्ण करें | मान आप हम लोगों के बहुत पोषण करने के लिये और धन होने के लिये नाभि में प्राण के समान प्राप्त होवें और ग्रात्मा से जो तुरन्त रक्षा करने वाला अद्भुत आश्चर्य रूप बहुत घा पूरा धन है उस को हम लोगों के लिये प्राप्त कीजिये" "3 ܬ 1 ऋग्वेद प्रथम मंडल सूक्त १८४ ० ४ हे देने वालो ! जो तुम दोनों की नथुरादि गुण युक्त देनि वर्तमान है वह हम लोगों के लिये हो । और तुम प्रशंसा के योग्यकार करने वाले की प्रशंसाको प्राप्त हो प्रो और अपनेको सुनने की इच्छासे जिन तुमको उत्तम पराक्रम के लिये साधारया मनुष्य अनुमोदन देते हैं तुम्हारी कामना करते हैं उनको हमभी अनुमोदन देखें - " ऋग्वेद दूसरा मंडल सूक्त ९४ २९२ "हे धम देने वाले परम ऐश्वर्य युक्त सुन्दर जीरों वाले हम लोग जो तुम्हा रा बहुत अद्भुत पृथिबी बादि बसु से भिन्दु हुए बहुत समृद्धि करने वाले धनको अभोंके लिये हित करने बाली पृथिवी के बीच प्रति दिन विज्ञानरूपी संग्राम यक्ष में कहैं उसको हमारे लिये देको आप ममर्थ करो--" | ऋग्वेद प्रथम मंडल सूक्त १४१ ऋ० १२ "जो प्रशंसा युक्त जिसके रथ में चांदी | सोना विद्यमान जो उत्तम प्रकाश वाला जिस के ब्रेगवान बहुत घोड़े वह दान शीख जन हम लोगों को सुने और जो गमम शील भिवाम करने योग्य ग्नि के समान प्रकाशमान जन उत्पन्न किये हुवे अच्छे रूप को श्रतीव प्राप्ति क राने वाले गुणों से अच्छा प्राप्त करे वह हम लोगोंके बीच प्रशंमित होता है।' ऋद प्रथम मंडल सूक्त १४२ ऋ० १० प्यारे प्रार्य समाजी भाइयो ! तुम "हे विद्वान् हम लोगों की कामना को स्वामी दयानन्द सरस्वती जीने यह करने वाले विद्या और धन से प्रकाश | यकीन दिलाया है कि, परमेश्वर ने आर्यमत लीला | ( ७ )
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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