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________________ आर्यमतलीला ॥ पिता के और विद्वानों में प्रसिद्ध रूप, प्रकाशके सासवें समुल्लास में इस प्रकार को निश्चपसे प्राप्त होते हैं वे धार बार | लिखते हैं:बढ़ते हैं और उत्तम उत्तम कार्यों को “जिस मंत्रार्थ का दर्शन जिस जित भी करते हैं वैसे तुम भी मिला हुवा ऋषि को शुभ्रा और प्रथम ही जिसके काम किया करो" पहले उन मंत्र का अर्थ किसी ने प्रप्यारे भाइयो ! विचार कीजिये कि कामित नहीं किया था किया और दूइस सूक्त अर्थात् गीत को उपर्यत पां- मरों को पढ़ाया भी इस लिये अद्याचवीं बटी और सातवीं ऋचा अर्थात | वधि उस उस मंत्र के साथ ऋषि का कली का विषय मिलता है वा नहीं? | नाम स्मरणार्थ लिखा पाता है जो प्रद्धिमानो ! यदि आप स्वामी जी के कोई ऋपियों को मंत्र कर्ता वसलावें अर्थों के अनुसार घेदको पढ़ेंगे तो आप उन को मिथ्यावादी समझ व तो मंत्रों | के अर्थ प्रकाशक है." को विदित हो जावेगा कि इस उप हम का शोक है कि इस लेख का यंत ऋचाओं का विषय तो शायद | | लिखते समय स्वामी जी को पूर्वापर कुछ मिलता भी है परन्तु ऐमे सूक्त छ लता भी है परन्तु एम सूक्त ब- का कल भी ध्यान न रहा यह बात हुत हैं जिन की ऋचाओं का विषय | भज गये कि हम क्या सिद्ध करना चाघिरकुल नदी मिलता है-इस कारण | हते हैं ? स्वामी जी आप ही तो यह वंद कदाचित् ईश्वर धाक्य नहीं हो कहते हैं कि वेदों को ईश्वर ने सष्टिकी सकते हैं आदि में गुन मनध्योंके सान के वास्ते वंद के पढ़ने मे यह भी प्रतीत होता प्रकाश किया जो सष्टि की प्रादिमें है कि वेदोंक प्रत्येक सूक्त अपांत् गीत बिना मा बाप के जंगल बयाधान में अलग अलग मनुष्यों के बनाये हुवे हैं। पैदा किये गये थे और जो किसी बात यदि एक ही मनुष्य इन गीतों को ब- का भी ज्ञान नहीं रखते थे-क्या ऐसे नाता तो एक एक विषय के सैकड़ों मनष्यों की शिक्षा के वास्ते ईश्वर ने गीत न बनाता और वेदों का कथन ऐमा कठिन वेद दिया जिसका अर्थ मी सिलसिलेवार होता-स्वामी जी के मघ लोग नहीं समझ सकते थे ? वरया | लेख मे भी जो उन्हों ने सत्यार्यप्र-वह यहाँ तक कठिन थे कि उस वेदके काश में दिया है यह विदिल होता है | एक एक मंत्र का अर्थ ममझने के वास्ते कि वेदका प्रत्येक गीत पृथक पृषक ऋ- कोई कोई ऋषि पैदा होता रहा और षिके नामसे प्रसिद्ध है-और प्रत्येक मंत्र | जिम किसी ऋपि ने एक मंत्र का अर्थ अर्थात् मीतके साथ उस गीतके घनाने भी प्रकाश कर दिया वह घेद का मंत्र | वाले का नाम भी लिखा चला शाता उम ही ऋषि के नाम से प्रसिद्ध हो है इस विषय में स्वामी जी सत्यार्थ | गया स्वामी जी का यह कथन बेदों के
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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