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________________ ( ३२ ) श्रार्यमतलोला । ऋग्वेद छटा मंडल सूक्त १५ ऋचा ३ | के समान पदार्थों का सेवन करती और "हे शूरवीर जो यह प्रत्यचा अर्थात् | हनती हुई स्त्री के तुल्य रूप की निरधनुष की तांति जैसे विदुषी (विद्वान् | न्तर प्राप्त होती है स्त्री) कहने वाली होती मैंने अपने : इन प्रथम उत्पन्न जेठी बहिप्यारे मित्र के समान वर्तमान प्रतिकी |नियों में अन्य कोई पीछे उत्पन्न हुई मत्र और से संग किये हुए पत्नी स्त्री | छोटी बहिन किन्हीं दिनों में अपनी कामको निरंतर प्राप्त होती है येमे । जेठी बहिन के प्रागे जावे और पीछे धनुष के ऊपर बिस्तारी हुई तांति | अपने घर को चली जावे येसे जिन से संग्राम में पार को पहुंचाती हुई गुंज- अच्छे दिन होते व प्रातः समय की देना हम लोगोंके लिये निश्चय युक्त ती है उसीक तुम यथावत् जानकर उसका प्रयोग करोजिनमें पुरती धन की धरोहर है उस प्रशंभित पदार्थ युक्त धनका प्रतिदिन अत्यन्त नवीन होती हुई प्रकाश की करें ये अन्धकारको निराला करें ८ ऋचा ५ हे मनुष्यो बहुत बागों की पालना करने वाले के ममान इसके बहुत पुत्र के समान प्राण संग्रामों की प्राप्त होकर धनुषचीं श्रीं शव्द करता है तथा पीठ पर नित्य बंधा और उत्पन्न होता हुआ ममस्त संग्रामम्य वैरियोंकी टोली और सेनाओंोंको जीतना है वह तुम लोगों को यथावत् बनाकर धारण करना चा हिये " प्रभात वेला अर्थात् सुबह के समय की प्रशंसा वेदांके कवियों ने इम प्रकार गीत बनाये हैं ऋग्वेद प्रथम मंडन सूक्त १२४ ऋचा १-९ " यह प्रातः समय की बेला प्रत्येक स्थान को पहुंचती हुई विन भाई की कन्या जैसे पुरुषको प्राप्त हो उसके म मान वा जैसे दुःखमपी गढ़में पड़ा हुआ जन धन आदि पदार्थों के विभाग करने के लिये राजगृह को प्राप्त हो वैसे मब ऊंचे नीचे पदार्थो की पहुंचती तथा अपने पति के लिये कामना करती हुई पवनकी प्रशंसा में कविताई ऋग्वेद प्रथम मंडल सूक्त १६८ ऋचा "हे विद्वानों जब पवन मेघों में हुई गर्जना रूपवाको प्रेरणा देते अर्थात् बटुलों को जाते हैं नब नदियां वज तुल्य किरणों से अर्थात् विजुनीकीलपद झपटोंसे होभित होती हैं और जब पवन मेघों के जन्न वर्षाते हैं तब बिजुलियां भूमि पर मुसुकियात सो जान पड़ती हैं वैसे होश्रो ।" तुम प्रिय पाठको हम इस समय इम बातकी बहन नहीं करते हैं कि वेदों में क्या २ विषय और क्या क्या मज़मून हैं इस को हम आगामी लेख में .. प्रकट करेंगे इस समय तो हम केवल इतना कहना चाहते हैं कि यदि परमेश्वर उन पुरुषोंको जो बिना मा बाप के जंऔर सुन्दर बत्रों वाली विवाहिता स्त्री । गल बयाबान में उत्पन्न हुये थे, जो " श
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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