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________________ प्रार्थमलगोला ॥ ( ३९ ) तिप्रेमसे विद्वानों की बहन है मो तू | वाले हम लोगों में शोभा भी हो-,, ऋग्वेद प्रथम मंडनसूक्त ११० ४ मैंने जो सब ओरसे होना है उस देने योग्य द्रव्यको प्रीतिसे सेवन कर - " 6." "वधर से वा उत्तर से वा कहीं से सब ओर से प्रसिद्ध वीर्य रोकने वा अव्यक्त शब्द करने वाले वृषभ आदि ! का काम मुझ को प्राप्त होता है अ ! २ हे पुरुषो जैसे मैं जं । गुण सुङ्ग बोलें | या जो प्रेमास्पदको प्राप्त हुई जो पौ * मामीके समान वर्तमान अर्थात् जैसे चन्द्रमाको पूर्णकान्ति मे युक्त पौर्णमासी होती है वैमी पूर्ण कान्तिमती और जो विद्या तथा सुन्दर शिवा महित वाणी से युक्त वर्तमान है उन पर मैंश्वर्ययुक्तको रक्षा आदिके लिये बुला ता हूँ उन श्रेष्ठकी स्त्रीको मुखके लिये बुलाता हूं वैसे तुम भी अपनी स्त्री को बुलाओऋग्वेद प्रथम मंडल मूक्त १२३ ऋचा १०-१३ | हे कामना करने हारी कुमारी जो तूं शरीर से कन्या के समान वर्तमान व्यवहारों में अतिजी दिखाती हुई अत्यंत संग करते हुए विद्वान् पति की प्राप्त होती और सन्मुख अनेक प्रकार सद्गुणोंसे प्रकाशमान जवानीको प्राप्त हुमन्दमन्दमती हुई छाती आदि अंगों की प्रसिद्ध करती है मो तू प्रभात बेलाकी उपमाकी प्राप्त होती है-" 66 | प्यारे पाठको वेदों में कोई कथा नहीं है किमी एक स्त्री वा पुरुष का बगन नहीं है बग्ण अनेक पृथक् पृथक् गीत हैं तत्र किमी विशेष स्वीका कथन क्यों आया कथारूप पुस्तकों में तो इम प्रकार के कथन आने सम्भव हैं परन्तु ऐमी पुस्तक में जिसकी बावल यह कहा जाता है कि उस पुस्तक को ईश्वर ने सर्व मनुष्यों को ज्ञान और शिक्षा देने के वास्ते बनाया ऐसा कथन झाना - सम्भव ही है-- यदि हमारे भाई वेदों को पढ़कर इस प्रकार के कथनों की संगति मिला कर दिखा देवें तब वे शक हमारा यह ऐनगज हट जावे नहीं तो स्पष्ट विदित है कि जिस बात पर कविताई करते समय कवियों का ध्यान गया उम ही बात का गीत जोड़ दिया इस प्रकार बंदों के गीतों में कवियों ने अनेक कविताई की है । कविताओं के धनुषकी तारीफ में इसप्रकार गीत हैं: "हे प्रातः समय की वेला मी अन बेली स्त्री तूं आज जैसे जन्नकी किरण को प्रभात समय की बेना स्वीकार करती वैसे मनसे प्यारे पतिको अनुकू लता से प्राप्त हुई हम लोगों में अच्छी २ बुद्धि कामको घर और उत्तम सुख देने वाली होती हुई हम लोगों को ठहरा जिससे प्रशंमित धन : उनके मदृश काम देव उत्पन्न होता है और धीरज से रहित वा लोप हो जाना लुकि जाना ही प्रतीत का चिन्ह है जिसका मो यह स्त्री वीर्यवान धीरज युक्त श्वास लेते हुए अर्थात् शयनादि दशा में निमग्न पुरुषको निरन्तर प्राप्त होती और उससे गमन भी करती है." |
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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