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________________ आर्यमतलीला ॥ ( २९ ) रने वाला हुआ है उमने यही कहा है यह मिद्धान्त पैदा कहांसे हुया ! इम कि मैं अपने ज्ञान में कुछ नहीं कहता प्रश्न के उत्तर में प्यारे भाइयो आपको यह हूं वरण मुझको यह सब शिक्षा जिम ही कहना पड़ेगा कि वेदोंसे क्योंकि का मैं उपदेश करता हूं परभेश्वरमे प्राप्त । मब मत मतान्तरोंके स्थापित होनेसे पहल वदो ही का प्रकाश होना बयान मुमलमानी मनके स्थापन करने वाले किया जाता है और वेदोंकी हो - मुहम्मद साहब की निम्ब। कहा जाता स्पत्तिमें यह मिद्धान्त स्थापित किया है कि वह बिना पढ़े लिख माधारण जाता है कि परमेश्वरने सष्टिकी प्रादि बुद्धिके प्रादमी थे परन्तु उनके पास में हजारों मनप्यों को बिना मा बाप परमेश्वरका दूत परमेश्वरके वाक्य लाता के पैदा करने के पश्चात् उनमेंमे चार मथा जिसका संग्रह होकर फरान बना! नयाका जिनका नाम प्राग्न, वायु, प्राहै-- परमेश्वर के इन ही वाक्योंका उपदित्य तथा अंगिरा था एक एक वंद देश महम्मद माहव अश्य के लोगें।को का जान दिया और उन्होंने उम ई. दिया करते थे--ईसासमोह और इनमे श्वर के ज्ञान को मनुष्यों पर प्रकट करपहले जो पैगम्बर हुये हैं उनके पाम दिया-प्यारे भाइयो ! आप जमे बभी परमेश्वर की ही आज्ञा पाया करती । द्विमानों को जो भारतवर्षका अंधकार थी इम ही प्रकार अन्य मत मतांतरों का दूर करना चाहते हैं ऐमा सिद्धान्त मा. हाल है..दान में भी पंजाबदेश के कानना योग्य नहीं है वरन आपको हम दियान नगरमें एक मुमलमान महाशय का निषेध करना चाहिये जिससे इस मौजद हैं जिनके पास परमेश्वरको प्रा- देश के बहुत उपद्रव दूर हो जावेंजा पाती है और इम ही कारगा भा nी और सी कारण भा. डम स्थान पर हम वडे गौरखके माल गत वर्षके हजारों हिन्दू मुमनमान उन यह प्रकट करते हैं कि यह केवलमात्र | पर श्रद्धा रखते हैं जैनमत के ही तीर्थंकर हुए हैं प्यारे आर्य भाइयो ! उपर्युक्त लेखमे | जिन्होंने इम मिद्धान्तका प्राश्रय नहीं पापको पर्णतया विदित हो गया कि | लिया है जिन्होंने तप और ध्यान के यह सिद्धान्त कि तीन काम का ज्ञान | बन्न से अपनी अत्मास मोह आदिक मैल . रखने वाली शक्ति अपना ज्ञान किसी को धोकर आत्माकी निज शक्ति अर्थात मनष्यके द्वारा प्रकट कर सकती है, कैसा | पर्णज्ञानको प्राप्त किया है और अपने केव भयंकर और अंधकार फैलाने वाला है | ल ज्ञानके द्वारा चराचर सर्व बस्तनों को और इसके कारण अनेक मत मतान्तर पूर्णरूप जानकर अपनी ही सर्वज्ञताका फैलानेसे संमार में कैमा उपद्रव मचा है नाम लेकर सत्यधर्भका प्रकाश किया ! परन्तु कृपाकर विचार कीजिये कि 'है-और किसी दूसरेके जानका प्राश्रय
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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