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________________ ( २८ ) आर्यमतलीला ॥ नहीं है, जो कल गप्त वार्ता हम बता- और अधम कार्य करने पड़ते हैं उम ते हैं वह तो हमारे इष्टदेवी देवनाका का हेतु एक यह ही है कि भारत के ज्ञान है अर्थात् वह देवी देवता इन लोगों के चितमें यह श्रद्धान घुमा हुआ अपने भक्तों के द्वारा गुप्त वार्ता बता है कि भत भविष्यात और बर्तमानका देता है-इस हेतु नाहे यह भक्त लोग इमान रखने वाली शक्ति किमी मनष्य से भी अधिक मूर्ख हों यहाँ तक कि के द्वारा अपना जान किसी विषय चाहे बह पागल और जंगली पशों में पकट कर सक्ती है। यदि यह श्रद्धाके समान अजान हों तो भी हम को न हमारे भाइयों के हृदय मेंसे हटजावे क्या वह गुप्त शक्ति अर्थात् देवी दे-तो भारतवर्ष में से यह सब अंधकार वता जो इनके द्वारा हमारी गप्त बात मिट जावे और इन भक्तों की कल भी बताते हैं उन को तो तीन काल का पूछ न रहे। क्योंकि फिर जो कोई गप्त | ज्ञान है-यह भक्त लोग तो हमसे वा-बार्ता बताने का दावा करै वह अपने | र्तालाप होनेके वास्ते एक निमित्त मात्र ही जानके आश्रय पर करें और किसी के समान हैं-इम कारण हम को इन गुप्त शक्ति के प्राश्रय पर कोई बात न भक्तोंको किमी प्रकार की परीक्षा लेने हो सके और जब कोई यह कहे कि की प्रावश्यकता नहीं है-चाहे यह कैसे मुझको इतना जान हो गया है कि मैं ही पापी और अधम हों और पाहगुप्त बात बता सक्ता हूं तो उनकी प. कैसे दी मूर्ख हों इमसे हमारे प्रयोजन रीक्षा बहत मामानी मे हो मके क्यामें कुछ फ़रक नहीं पाता है-- कि अपने नित्यके व्यवहारमें भी उम प्यारे भाइपो ! यह मब अन्धकार को अपने आपको इतना ही ज्ञानवान जो भारतमें फैला हुआ है जिसके का- याना पड़े कि जिममे उनका तीन रगा हमारे भोले भाई और मोनी ब- काल को बातका जानना सिद्ध होता हने ठगी जाती हैं और जिनमे अनेक | हो अथात् फिर धोका न चल मके। अपवादा होते हैं--जिम के कारगा| प्यारे भाइयो ! मच पूछिये तो इस बच्चों के रोगों को श्रीवधि नहीं होती सिद्धान्त ने कि तीन काल की बात । है, योग्य वैद्यों और हकीमोंसे उनका जानने बाली गुप्त शक्ति अपने ज्ञानको इलाज नहीं दोना है, जिन के कारण किमी मनुष्य के द्वारा प्रकट कर सक्ती अनेक बच्चे नृत्यु को प्राप्त होने हैं- है, केवल यही अंधकार नहीं फैलाया है जिन के कारमा भनी की बनाई हुई बरण समार के सैकड़ों जितने मत म. बानोंमे घशेम गारी पानद और मर तांतर फैले हैं वह सब उस ही सिद्धाबडे दोष फैल जाते हैं. के कागान्त के महारे फल हैं, क्योंकि जब जब उनकी स्त्रियों का घर बनी कोई किमी नवीन मत का स्थापन क - -
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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