________________
-
भार्यमतलीला ॥
१५७
जिससे हम लोग फिर पिता और । मुक्तिसे लौट कर फिर नहीं माने के माता और लो पत्र बंध आदि | विषय में जो लेस हैं उनको मठा क
| रने के सबूतमें सत्यार्थप्रकाशके पृष्ठ २३९ अर्थात् वेदभाग्यके अर्थों के अनुसार पर सांख्य का यह सूत्र दिया है:माता पिता के दर्शनों के कारण नहीं इदानीमिव सर्वत्र नात्यन्तोच्छेदः।"
| और अर्थ इसका इम प्रकार कियाहैःबरव संसार के सर्व प्रकार के मोह के | कारमा घेद में इन मंत्रों द्वारा ऐसे म.
| "जैसे इस समय बंध मुक्त जीव हैं वसे हान् देवता के तलाश की शिक्षा दी हो सर्वदा रहते हैं अत्यन्त विच्छेदबंध गई है जो मोक्ष से निकाल कर फिर
मुक्ति का कभी नहीं होता किन्तु बंध जम्म देवे।
| और मुक्ति सदा नहीं रहती-" कुछ भी हो हम तो स्वामी दयानंद पाठक गया ? मांख्य दर्शन में स्वयम सरस्वती जी के साहस की प्रशंमा क-बहुत जोर के माथ मुक्ति मे लौटने का रते हैं हम ने इस लेख में मांरूप द.
निषेध किया है जैमा निम्न सूत्रोंसे
विदिन होता है:शंन के अनेक सूत्र लिखकर दिखाया है
___ 'न मुक्तस्य पुनर्बन्धयोगोऽप्यना.. कि सांख्य दर्शन ने मुक्ति से लौटनेका कृत्ति पतेः ॥ सा प्र० ६ १२ १७ स्पष्ट खंडन किया है परन्तु स्वामी जी |
। अर्थ-मुक्त परुष का फिर दोबारा पनिषदों और व्याम जी के शा-बंध नहीं हो सक्ता है क्योंकि अतिमें रीरक मन को अमत्य मिद्ध करने और कहा है कि मुक्त नीव फिर नहीं लौट मुक्ति मे लौटकर संमार में पढने की| ता मावश्यकता साबित करने के वास्ते "अपरुषार्थत्वमन्यथा॥ सांग ॥ प्रक मांरूप का भी एक सूत्र सत्यार्थप्रकाश६॥ स० १८ में दिया है भागामी में हम उस की अर्थ-यदि जीव मुक्तिसे फिर बन्ध भी व्याख्या करेंगे और सांख्य दर्शन न में पा सक्ता हो तो पुरुषार्थ अर्थाके शब्द शब्द से नित्य मुक्ति दिखावेंगे।। त् मुक्तिका माधन ही व्यर्थ हो जावे-- । प्रायेमत लीला।। ऐसी दशा में यह संभव हो नहीं
सक्ता कि सांरुपदर्शन में कोई एक ( सांख्यदर्शन और मुक्ति) सूत्र क्या वरण कोई एक शब्द भी ऐसा
हो जिससे मुक्तिसे लौटना प्रकट होता सांख्यदर्शन को स्वामी दयानन्दजी | हो-फिर स्वामी दयानन्दजीने सपर्यत ने इतना गौरव दिया है और ऐमा सूत्र कहांसे निख मारा? इसकी जांच मुरूप माना है कि उपनिषद् और म अवश्य करनी चाहियेहात्मा व्यास जी के शरीरक सूत्र में प्यारे आर्य भाइयो ! उपर्युक्त सत्र |