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________________ ( १२ ) भार्यमतलीला। ति करने में एक यह भी सुबीता है , रफ घिनकी गाड कर और ऊपर भी | कि इस में बार्तालाप करने की शक्ति शाखाएं छानकर ऊपर पत्त छान दिये है यदि प्रत्येक मनष्य एक एक बहुत जार्वती शीत और वषांसे बप नए हैं मोटी मोटी बात का भी अनुनान करें ऐका समझकर नही पत्थगेंके औदो हज़ार मनष्य एक दूमर से अपनी जार में शाखा काटता है और एक मातको कहकर पल ही में हमार२ वा खराज मा पर आना लेता है। बात मान लेते हैं और इन बातों की मी को किमी ममय लममें से ऐमा । गांद का नवीन ही बारीया बात } सकता है कि यदि ताक की पत्तों । पैदा कर लते हैं। इसके अतिरिक्त | में शरीर ढरंशः लावैलो गर्मी प्राधिकारी । आज कल भी वहशी मनध्य अफरीका प्रभास मिलता है इन प्रकार आदि देशों में मोजद हैं जो पश् के । न संपने का प्रचार हो जाता है। समान नंगे विचरते हैं और पश के ! पक्षियों के घोंगलों और सही ही समान उनका खाना पीना और जालों को देखकर किसी के पास में | रात दिन का व्यवहार है उनमें से पद पाता है कि याद क्षों की बहुत से स्थान के बहणियों ने बहन वनको प्रापुम में उलझा लिया जाये कुछ उमति मी करनी है और बहन यात् न लिया जाये तो अच्छा कुछ उन्नति करते जाते हैं और मानने का प्रखर आय फिः कई ता को प्रात होते जाने में उनकी न- यह खजर, मन, कशास मानिक के न्नति के क्रम को दसकर विद्वान हु-बर रेशां को बनने गमाता है। तिहासकार में इन विषय में बहुत जान में प्रकार का सी घस्न लिी । वह लिखते हैं और फल पा होते हैं मयको खात २ कि किमी समय में जब उन में कोई । उनको यद भी ममम जाने भगती है। गरा ममझदार हाना है यह पत्थर के ! कि कौन दक्ष गणकारी है और कौन ! नोकदार वा धारदार टकहो की घर । खान में दुखदाई-मार कारी होता ती के खोदने का मकसो प्राधिकरनको मारने का प्रीशार बनाने है उसकी रक्षा करने लगते हैं शीर । ता है और आपके दना देखी मान्यभी दुखदाई को त्याग देत- जंगल में बांम सब लोग पत्थरों को समान में बने । के यो में प्रापका में रगड खाकर आग । लगते है-किमी ममय में किसी गहना माया करती है एम प्रागमे यह . धन की देशकर उस मे किली को बहशी लोग मदुल डरते हैं परन्तु मा मान कालाई यदि हमी कानान्तर में किमी समय कोई इनके । की शामा मिली ग्यान पर पान-बाने की बस्तु यदि इस भाग में भन .
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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