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________________ - भार्यमतलीला ॥ १३७ | सर्व प्रकार के पाप करता है और जिन | कि जो कोई मनुष्य हिंसा वा चोरी, बो दूर करने म को मुक्ति सुख | जारी करेगा उसको बहुत बहुत दंड मिलतापम जीवात्मा में फिस का दिया जायेगा-तो क्या वह राजा ख-1 रख लग जाती हैं। इस का उत्सर मब यम् अपराधी नहीं है? क्या वह स्वभाई शीघ्रताके साथ यह ही देखेंगे कि । पम् अपराध की प्रेरणा और सहायजीवके पूर्व उपार्जित कर्म ही इमके ना नहीं करता है? राजा और न्याय पारस परन्तु उन पूर्वापार्जित कर्मों का वा दंड दाता का तो यह काम का फल देता कौन? मका उत्तर | है और दंड इस ही हेतु दिया जाता देगा जरा बठिन बात है क्योंकि यदि है कि ऐमा दंध दिया जाये जिस से | र फल देता है तो ईश्वर प्रघश्य अपराधी फिर वह अपराध न करे । अन्यायी, पापी और पापकी प्रवृति यह कदाचित् भी दंड नहीं हो सका। कराने वाला तथा पापकी सहायता है कि अपराधी को ऐमा बना दिया करने वाला ठहरेगा। जावै कि वह पहले से भी अधिक प्रबिचारवान् परुषो ! यदि किसी पराध करने लगे। अपराधी को जिमने एक मनुष्य का | प्यारे भाक्यो ! ईश्वर जीवों के वासिर काटकर उमको प्रासांत करदिया। स्ते क्या कर्तव्य चाहता है? क्या वह | 1,राजा यह दंछ दे कि इसके मारे | यह चाहता है कि जीव मदेव राग शरीरसे ऐसे हथियार बांध दो जिमघ और इंन्द्रियों के विषय में फंमे | से यह अपराधी मनुष्यों को मार ने के रहे ? वा यह चाहता है कि इनसे विद्याप और कोई काम ही न करे, घा विरक्त होकर परमानंद सूप मुक्तिको किसी चोर को यह दंड देवै कि कुंचल प्राप्त हों? यदि वह राग, द्वेष और (क) लगाने के हथियार और इन्द्रिपों के विषय में फंसने को पाप ताला तोड़ने के प्रोबार हमके हाथोंसे समझता है तो राग, द्वेष करने वालों बांध दिये जावें जिससे यह चोरी ही और इन्द्रियों के विषयमें फंमने वाले काकाम किया करे, या किसी अपराधी जीवों को उनके इम पाप का यह दंड को जिमने परखो सेवन किया हो यद क्यों देता है कि वह आगामी को भी दंर देव विरामको ऐमी औषधी राग ट्रंप के वश में रहें और इन्द्रियों खिला दो जिस से या सदा कामातुर के विषय में फंसे । मिसने हिंसा का रहा कर ओर इम अपराधी को ऐसे पाप किया उस को तो यह दंड दिया | नगर में बोहदो व्यभिचारसी कि भील, हाकू प्रादिक म्लेच्छों में उम चिये बात मिल सत्ती हैं, और साथ का जन्म हो जिससे वह सदा ही म ही इसके यह ढंढोरा भी पिटवाता है मष्यों को मार कर उनका धन हरण -
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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