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________________ १०२ प्रार्थमतलीला ॥ यों को रोक.... अपने प्रात्मा और हते फिन्तु अपने स्वाभाधिक परमात्माका विवेचन करके परमात्मा शट गण रहते है" में मग्न होकर संयमी होवें , । (६) सत्यार्थप्रकाशके पृष्ठ २३० पर "धसे परमेश्वर के समीप प्राप्त होनेसे | स्वामी जी लिखते हैं:सबदोष दुःख छूटकर परमे " क्योंकि जो शरीर वाले होते श्वरके गण कर्म स्वभावके सदृमांमारिक दससे रहित नहीं हो सश जीवात्माके गण स्वभाव कते जसे इन्द्र से प्रजापतिने कहा है कि पवित्र होजाते हैं" हे परम पनि धनयुक्त पुरुष : यह (३) मत्यार्थप्रकाशके पृष्ठ २५२ पर रमन गरीर भरख था है और जैसे स्वामीजी लिखते हैं | सिंहके मुख में बकरी हो यह शरीर " मुक्तिमें जीवात्मा निमग्न होनेसे | मृत्युके मुख के बीच है मा शरीर म पूर्णज्ञानी होकर तमको सघ सम्मि-मरण और शरीर रहित जीवात्माका निवासस्थान इमीलिये यह जीव सुख हित पदार्थोंका भान यथावत् होता है, और दःखमे मदा ग्रस्त रहना है क्योंकि (४) मत्याच प्रकाशक पृष्ठ २३६. पर शरीर महिन जी के ममारिक प्रमाना स्वामीजी प्रश्नोत्तररूपमें लिखते हैं:- | को निति होती है और जो शरीर __ " ( प्रश्न) मुक्ति किसको कहते हैं? ( उत्तर ) “ मुझुन्ति पृथग्भवन्ति जना- रहित मुक्ति जीवात्मा ब्रह्ममें यस्यां सा मुक्तिः” जिसमें छूट जाना ही रहता है उसको सांसारिक सुख . उसका नाम मुक्ति है ( प्रश्न ) किमसे | छूट जाना ? ( उत्तर ) जिमसे छुटनेको दुःखका स्पर्श भी नहीं होता इच्छा मय जीव करते हैं । ( प्रश्न ) किन्त सदा आनन्द में रहता है। किमसे छुटनेकी इच्छा करते हैं (उत्तर) | स्वामीजीके उपर्युक्त वाक्यों मे स्पष्ट जिममे छटना चाहते हैं (प्रश्न) किस में | इटना चाहते हैं ? (उत्तर) दुःखसे (प्रश्न) विदित होता है कि स्वामी दयानन्द भरस्वतीजी मत्य मिहान्तकी झलकको पर ममझने और जानने परम्त अपने हते हैं: ( उत्तर ) मुम्बको प्राप्त होते चलोंको बहकाने और राजी रखने के हैं और ब्रह्ममें रहते हैं" वास्ते ठम्होंने कमही मत्याप्रकाशमें | (५) सत्यार्थप्रकाशके पष्ठ २३७ पर ऐमी अनहोनी बातें कहीं हैं जिमको स्वामीजी लिखते हैं: पढकर यह की कहना पड़ता किया " मोक्षमें भौतिक शगीर वा इन्द्रि- कुछ भी नहीं जानते थे और बिलक योंके गोलक जीवात्माके साथ नहीं र- अजान ही थे।
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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