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श्रीसमन्तभद्राय नमः •
श्रीमत्स्वामि- समन्तभद्राचार्यवर्य-प्रणीत
( श्री वीरजिन - गुणकथा - सहकृत ) हिताऽन्वेषणोपायभूत
युक्तयनुश सन
हिन्दी अनुवादादि सहित
कीर्त्या महत्या भुवि वर्द्धमानं त्वां वर्द्धमानं स्तुति-गोचरत्वम् । निनीषवः स्मो वयमद्य वीरं विशीर्ण-दोषाऽऽशय-पाश- बन्धम् ॥१॥
'हे वोरजिन ' - इस युगके अन्तिम तीर्थप्रवर्त्तक परमदेव - दोषों प्रौर दोषाऽऽशयोंके पाश-बन्धनसे विमुक्त हुए है - श्रपने ज्ञानप्रदर्शन - राग-द्वेष-काम-क्रोधादि विकारों अर्थात् विभावपरिणामरूप
कर्मों और इन दोषात्मक भावकमो के सस्कारक कारणो अर्थात् ज्ञानावरणर्शनावरण- मोहनीय - श्रन्तरायरूप द्रव्यकर्मों के जालको छिन्न-भिन्न कर