________________
समन्तभद्र - परिचय
३१
प्रतिवादियो पर - समन्तभद्रका इतना प्रभाव पडता था कि वे उन्हे देखते ही विषण्णवदन हो जाते और किकर्तव्यविमूढ बन जाते थे ।'
W
13
और एक तीसरे पद्यमे यह बतलाया गया है कि- वादीसमन्तभद्रकी उपस्थितिमे चतुराईके साथ स्पष्ट शीघ्र और बहुत बोलने वाले धूर्जटिकी - तन्नामक महाप्रतिवादी विद्वान्कीजिह्वा ही जब शीघ्र अपने बिलमे घुसजाती है— उसे कुछ बोल नही आता तो फिर दूसरे विद्वानोका तो कथा ( बात ) ही क्या है ? उनका अस्तित्व तो समन्तभद्र के सामने कुछ भी महत्त्व नही रखता । वह पद्य, जो कविहस्त मल्ल के 'विक्रान्तकौरव' नाटकमे भी पाया जाता है, इस प्रकार है
अवटु-तटमटति झटिति स्फुट - पटु- वाचाट - धूर्जटेर्जिह्वा । वादिनि समन्तभद्रे स्थितिवति का कथाऽन्येषाम् ॥
यह पद्य शकसंवत् १९०५० मे उत्कीर्ण हुए श्रवणबेलगोल के शिलालेख नं० ५४ (६७) मे भी थोड़ेसे पाठभेदके साथ उपलब्ध होता है । वहा 'धूर्जटेर्जिह्वा' के स्थानपर 'धूर्जटेरपि जिह्वा' और 'सति का कथाsन्येषा' की जगह तब सदसि भूप । कास्थाऽन्येषां ' पाठ दिया है, और इसे समन्तभद्र के वादारम्भ-समारम्भ-समयकी - उक्तियोमे शामिल किया है । पद्यके उसरूपमे धूर्जटिके निरुत्तर होनेपर अथवा धूर्जटिकी गुरुतर पराजयका उल्लेख करके राजासे पूछा गया है कि 'धूर्जटि-जैसे विद्वानकी ऐसी हालत होनेपर अब आपकी सभाके दूसरे विद्वानोकी क्या आस्था है ? क्या उनमे से कोई वाद करनेकी हिम्मत रखता है' ?
(१२) श्रवणबेलगोलके शिलालेख न० १०५ मे समन्तभद्रका