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________________ युगवीर-निबन्धावली नियपूजक्का ही स्वरूप है या उत्कृष्टकी अपेक्षा कथन किया गया है यह सब किस आधारपर माना जावे ? इसका उत्तर यह है कि धर्मसंग्रहश्रावकाचारके श्लोक न.१४४ में जो 'ष' शब्द पाया है वह उत्तमताका वाचक है। यह शब्द 'एनद्' शब्दका रूप न होकर एक पृथक् ही शब्द है। वामन शिवगम प्राप्त कृत कोशमें इस शब्दका अर्थ अग्रेजीमें desirable और 'o be desirrd किया है। सस्कृमें इसका अर्थप्रशस्त प्रशंसनीय और उत्तम होता है । इसी प्रकार पूजासार ग्रन्थके श्लोक न० २८ मे जहाँपर पूजक और पूजकाचार्य का स्वरूप समाप्त किया है वहाँपर, अन्तिम वाक्य यह लिखा है कि 'एवं लक्षणवानार्यो जिनपूजासु शस्यने' (अर्थात ऐसे लक्षणोसे लक्षित आयपुरुष जिनेन्द्रदेवको पूजामे प्रशंसनीय कहा जाता है।) इस वाक्यका अन्तिम शब्द 'शस्यते' साफ बतला रहा है कि पर जो स्वरूप वर्णन किया है वह प्रशस्त और उत्तम पूजक्का ही स्वरूप है। दोनो ग्रन्थोमें इन दोनो शब्दोंसे साफ प्रगट है कि यह स्वरूप उत्तम पूजकका ही वर्णन किया गया है। परन्तु यदि ये दोनो शब्द ( एष और शस्यते ) दोनो ग्रन्थोन भी होते या थोडी देरके लिये इनको गौरण किया जाय तब भी ऊपर कथन किये हुए पूजनसिद्धान्त, प्राचार्योके वाक्य और नि यपूजनके स्वरूपपर विचार करनेसे यही नतीजा निकलता है कि यह स्वरूप ऊचे दर्जेके नित्य पूजकको लक्ष्य करके ही लिखा गया है । लक्षणसे इसका कुछ सम्बध नहीं है। क्यो.क लक्षण लक्ष्यके सर्वदेशमें व्यापक होता है । ऊपरका स्वरूप ऐसा नहीं है जो साधारणसे साध रण पूजकमें भी पायाजावे, इसलिये वह कदापि पूजककालक्षण नहीं होसकता। याद ऐसा न माना जाय-अर्थात् इसको ऊंचे दर्जेके नित्यपूजकका स्वरूप स्वीकार न किया जावे, बल्कि नि यपूजक मात्रका स्वरूप वा दूसरे शब्दोंमें पूजकका लक्षरण माना जावे तो इससे आजकलके प्राय किसी भी जैनीको पूचनका माधकार नहीं रहता, क्योंकि सप्तशीलव्रत और हिसादिक
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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