SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिन-पूजाविकार-मीमांसा स्वरूप समझकर किसी भी गृहस्थको नि.यपू-न करनेसे नहीं चूकना चाहिये। सबको मानद और भाक्तके साथ नि.यपूजन अवश्य करना चाहिये। शदाऽधिकार ___ यहाँपर, जिनके हृदयमे यह प्राशका हो कि, शूद्र मी पूजन कर सकते हैं या नहीं? उनको समझना चाहिये कि जब तियंच भी पूजनके अधिकारी वर्णन किये गये हैं तब शूद्र. जो कि मनष्य है और तियंचोंसे ऊंचा दर्जा रखते हैं, कैसे पूजनके अधिकारी नहीं हैं? क्या शुद्ध जेनी नहीं हो सकते ? या श्रावकके व्रत धारण नहीं कर सकते ? जब शूद्रोको यह सब कुछ अधिकार प्राप्त है और वे श्रावक के बारह व्रतोको धारणकर ऊँचे दर्जेके श्रावक बन सकते है और हमेशासे शूद्र लोग जैनी ही नहीं; किन्तु ऊँचे दर्जेके श्रावक (क्षल्लक) तक होते आये हैं, तब उनके लिये पूजनका निषेध कैसे हो सकता है ? श्रीकुन्दकुन्द मुनिराजके 'वचनानुसार, जब बिना पूजन के कोई श्रावक हो ही नहीं माता, और शूद लोग भी श्रावक जरूर होते है, तब उनका पजन का अधिकार बन मिद्ध है। ___ भगवानके समवसरणमें, जहाँ तिर्य व भी जाकर पूजन करते है, वहाँ जिसप्रकार अन्य मनुष्य जाते हैं उसीप्रकार शूद्रलाग भी जाते हैं और अपनी शक्तिके अनुसार भगवानका पूजन करते है। श्रीजिनसनाचार्यकृत हरिवशपुराणमे,महावीरस्वामीके समवसरणका वर्णन करते हुए, लिखा है-समवसरणमें, जब श्रामह वीरम्वामीन मुनधर्म और श्रावकधमका उपदेश दिया, तो उसको सुनकर बहुतसे ब्राह्मण क्षात्रय और वैश्य लोग मनि होगये और चारो वर्णोके स्त्रीपुरुषोने अर्थात् ब्राह्मण, क्षत्रिय वैश्य और शूद्रोंने, श्रावकके बारह व्रत धारण किये। इतना ही नहीं, किन्तु उनकी पवित्रवाणीका यहाँतक प्रभाव पड़ा कि कुछ तियंचोंने भीश्रावकके व्रत धारण किये।' इससे, पूजा-क-दनापौर
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy