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________________ जिन पूजाधिकार-मीमासा अर्थात्--संध्यावन्दनादिके पश्चात् गृहस्थ, मधिपूर्वक जिनेन्द्रादिके पूजनके योग्य द्रव्योंको लेकर, समस्त भव्यजोबो द्वारा पूजित श्रीजिनम.दरजी जावे । भावार्थ-गृहस्थोको जिनमं.दरमें पूजनके लिये पूजनोचित द्रव्य लेकर जाना चाहिये । परन्तु इसका अभिप्राय यह नहीं है कि बिना द्रव्यके मदिरजीमें जाना ही निषिद्ध है, जाना निषिद्ध नहीं है । क्योंकि यदि किसी अवस्थामें द्रव्य उपलब्ध नहीं है तो केवल भावपूजन भी हो सकता है। तयापि गृहस्थोंके लिये द्रव्यसे पूजन करनेकी अधिक मुख्यता है। इसीलिये निन्यपजनका ऐसा मुख्य स्वरूप वर्णन किया गया है। __ ऊपर नित्यपूजनका जो प्रधान स्वरूप वर्णन किया गया है,उसके अतिरिक्त जिनाबम्ब और जिनालय बनवाना, जिनमदिरके खर्चके लिये दानपत्र-द्वारा ग्राम-गृहादिकका मदिरजीके नाम करदेना तथा दान देते समय मुनीश्वरोका पूजन करना. यह सब भी नि यपूजनमें ही दाखिल (परिगृहीत) है ।" जैसा कि आदिपुराण पर्व ३८ के निम्नलिखित वाक्योंसे प्रगट है - 'चैत्यचैत्यालयादीनां भक्त्या निर्मापण च यत । शासनीकृत्य दान च प्रामादीनां मदाऽर्चनम् ।।२८॥ या च पूना मुनीन्द्राणां नित्यदानानुषङ्गिणी। स च निस्यमहो शेयो यथाशक्त्युपकरिश्तः ॥२६॥ श्रीमागारधर्मामृतमें भी नित्यपूजनके सम्बधमें समय ऐसा ही वर्णन पाया जाता है, बल्कि इतना विशेष और मिलता है कि अपने घरपर या मदिरजीमें त्रिकालदेववदना-अरहतदेवकी आराधना १. इन दोनो श्लोकोका प्राशय वही है जो ऊपर अतिरिक शब्द के अनागर " " । मध्य दिया गया है । २. मदिपुराण उक्त श्लोक न २७, २८, २९ क अनुसार। , ३ भादिपुराणमें पूजन । अन्य चार भेदोका वर्णन करने के अनन्तर
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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