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________________ जिन-पूजाधिकार-मीमांसा ६३ -क्योकि कल्पद्रुम पूजन चक्रवर्त्ति ही कर सकता है, चतुर्मुख पूजन मुकुटवद्ध राजा ही कर सकते हैं, ऐन्द्रध्वज पूजाको इन्द्रादिक देव ही रचा सकते हैं, इसी प्रकार प्रतिष्ठादि विधान भी खास खास मनुष्य ही सम्पादन कर सकते हैं- इसलिये सर्वसाधारण जैनियोंके वास्ते नित्यपूजनकी ही मुख्यता है । ऊपर उल्लेख किये हुए प्राचार्यो प्रादिके वाक्योंमें 'दिने दिने' और 'अन्वह' इत्यादि शब्दोंद्वारा नित्यपूजनका ही उपदेश दिया गया है। इसी नित्य पूजन पर मनुष्य, तियंच, स्त्री, पुरुष, नीच, ऊँच, धनी, निर्धनी, व्रती, प्रव्रती राजा, महाराजा, चक्रवति और देवता, सबका समान अधिकार है श्रर्थात् सभी नित्यपूजन कर सकते हैं। नित्यपूजनको नित्यमह, नित्याऽर्चन और सदाचंन इत्यादि भी कहते हैं । नित्यपूजनका, मुख्य स्वरूप भगवज्जिनसेनाचार्यने श्रादिपुराण मे इस प्रकार वर्णन किया है। तत्र नित्यमहो नाम शश्वज्जिनगृहं प्रति । स्वगृहान्नीयमानाच गन्धपुष्पाक्षतादिका ॥ -प्र० ३८, ग्लो० २७ अर्थात् - प्रतिदिन अपने घरसे जिनमंदिरको गध, पुष्प, अक्षतादिक पूजनकी सामग्री ले जाकर जो जिनेन्द्रदेवकी पूजा करना है उसको नित्यपूजन कहते हैं । धर्मसग्रहश्रावकाचार मे भी नित्यपूजनका यही स्वरूप वरिंगत है । यथा - अल्लाच धवाङ्गान्नीतैर्जिनालयम् । दन्ते जिना युक्त्या नित्यपूजाऽभ्यधायि सा ॥ -- श्र० ६ श्लो० २७ प्रतिदिन क्या स्त्री, क्या पुरुष, क्या बालक, क्या बालिका - सभी गृहस्थ जन अपने अपने घरोंसे जो बादाम, छुहारा, लौंग, इलायची या अक्षत ( चावल ) श्रादिक लेकर जिनमंदिरको जाते हैं और वहा उस द्रव्यका, जितेन्द्र देवादिको स्तुतिपूर्वक नामादि उच्चारण करके,
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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