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________________ युगवीर-निबन्धावली पाप, प्रज्ञानियोका अज्ञान और मिथ्यात्वियोका मिथ्यात्व छुडानेमे जिनकी प्रवृत्ति नही होती,जो सप्तव्यसन और पचपापोका त्याग नहीं करते, जो अपने भाईयोको सताने और दुख देनेमे आगा-पीछा नहीं सोचते और जिनके हृदय छल-कपट, ईर्ष्या-द्वेष, अन्याय-द्रोह और वैर-विरोधसे परिपूर्ण हैं, उनके दिलोमे दृष्टिमे भी न आनेवाले एकेन्द्रिय जीवोकी रक्षाका भाव होना कब कोई अनुमान कर सकता है ? कदापि नहीं । इसलिए जिन भाईयोका ऐसा खयाल हो भी, उनको अपना खयाल बदल देना चाहिये और लोक-प्रवाहमे न बह कर बाह्याडम्बर और बनावटको छोडकर अन्त शुद्धिकी ओर विशेष ध्यान देना चाहिये और अपने दोषोका सशोधन-पूर्वक सच्ची दयाको हृदयमे स्थान देकर जिनधर्मकी महिमा प्रकट करनी चाहिए । इसीमे जाति और देशका कल्याण हूँ और इसीसे जैनी अपने उस कलकको दूर करनेमे समर्थ हो सकते है जो अपने पूज्य पुरुषोकी पवित्र कीति और नामको बट्टा लगानेसे उनके मस्तकपर चढा है। __आशा है हमारे धर्मोपकारी, धर्मवीर और जैनधर्मके सच्चे प्रेमी अब अपनी गाढ निद्राको त्यागकर अपने कर्तव्यकी ओर भुकेगे,अपने भाइयोकी हालत सुधारेगे, उनका अज्ञान-प्रमाद दूर करेगे, उनके हृदयोमे कारुण्य-जलका स्रोत बहाएँगे उनसे परोपकार-वत धारण कराएँगे और जहाँतक बनेगा पापियों अज्ञानियों और मिथ्याष्टियों पर दया करके उनका पाप, अज्ञान और मिथ्यात्व छुड़ाएँगे । साथ ही श्री अकलकदेव सरीखी 'कारुण्यबुद्धि' को हृदयमे धारण कर स्वजाति-विजाति, देशी-विदेशी, आर्य-म्लेच्छ और जैनी-अजैनी सब ही प्रारिणयोको जिनक्चनामृतका पान कराकर-जैनधर्मकी शरण में लाकर उनका हित-साधन करेगे और इस प्रकार जैनधर्मके लुप्तप्राय गौरवको पुन उज्जीवित करनेमे समर्थ होगे।
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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